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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद
4. निर्मित्तवादी-ईश्वरकर्तृत्ववादी, 5. सातवादी-सुख से ही सुख की प्राप्ति मानने वाले, 6. समुच्छेदवादी-क्षणिकवादी, 7. नित्यवादी-लोक को एकान्त मानने वाले, 8. नास्तिपरलोकवादी-परलोक में विश्वास न करने वाले (स्थानांग, 8.22 [537])।
स्थानांग में अक्रियावाद अनात्मवाद एवं एकान्तवाद दोनों अर्थों में प्रयुक्त हुआ है।
जिनदास महत्तर के अनुसार 'विरुद्ध' मतवादिक क्रियावादियों, अज्ञानवादियों और विनयवादियों के विरुद्ध होने के कारण विरुद्ध कहलाए (अनुयोगद्वारचूर्णि, पृ. 12 [538])। ये अक्रियावादी दर्शन में आस्था रखने वाले थे।
अज्ञानवाद __ जैन आगमों में चार समवसरण की अवधारणा में अज्ञानवाद सिद्धान्त का उल्लेख हुआ है। भगवान महावीर के युग में अज्ञानवाद की विभिन्न शाखाएँ थीं। ___अज्ञानवाद की अवधारणा में कुछ श्रमण ब्राह्मणों के मत में समूचे लोक में जो मनुष्य हैं, वे कुछ भी नहीं जानते। जैसे म्लेच्छ अम्लेच्छ के कथन को दोहराता है और उसके अभिप्राय को न जानते हुए उसके कथन का पुनः कथन कर देता है। इस प्रकार अज्ञानी अपने-अपने ज्ञान को प्रमाण मानते हुए निश्चय (सत्य) अर्थ को नहीं जानते। म्लेच्छ की भांति उसका हार्द नहीं समझ पाते और स्वयं को अज्ञान के विषय में निश्चय नहीं करा पाते (सूत्रकृतांग, I.1.2.41-43 [539])। अज्ञानवादी स्वयं के बारे में भी संशय की स्थिति में रहते हैं। परलोक आदि सत्य हैं या असत्य? (यह हम नहीं जानते) ऐसा चिन्तन करते हुए तथा यह बुरा है, यह अच्छा है-ऐसा कहते हुए वे मृषा बोलते हैं (सूत्रकृतांग, I.12.2-3 [540])।
इस दार्शनिकता का आधार अज्ञान है (सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा-111 [541])। अज्ञानवादियों में दो प्रकार की विचारधाराएँ संकलित हैं। कुछ अज्ञानवादी आत्मा के होने में संदेह करते हैं और उनका मत है कि आत्मा है तो भी उसे 1. आचार्य महाप्रज्ञ ने उक्त आठों मतों को विभिन्न दर्शनों के साथ विवेचित किया है। देखें ठाणं
8.22 का टिप्पण, पृ. 832-833.