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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद
हूँ'-यह मानने वाला भी कुछ नहीं करता और 'मैं नहीं करता हूँ'-यह मानने वाला भी कुछ नहीं करता। वे दोनों पुरुष तुल्य हैं, एकार्थक हैं और कारण को मानने वाले हैं। सब कुछ नियति करती है। यह सारा चराचर जगत् नियति के अधीन है (सूत्रकृतांग, II.1.39,41 [419])। उपासकदशा में भी गोशाल की कुछ ऐसी ही अवधारणा की पुष्टि होती है कि नियति ही समस्त ब्रह्माण्डिय एवं तात्त्विक परिवर्तन का एकमात्र अभिकर्ता है, और पुरुषार्थ, कर्म या वीर्य नाम की जैसी कोई चीज नहीं है (उपासकदशा, 6.28 [420])। किन्तु अज्ञानी पुरुष कारण को मानकर इस प्रकार जानता है। मैं दुःखी हो रहा हूँ, शोक कर रहा हूँ, खिन्न हो रहा हूँ, शारीरिक बल से क्षीण हो रहा हूँ, पीड़ित हो रहा हूँ, परितप्त हो रहा हूँ, यह सब मैंने किया है। दूसरा पुरुष जो दुःखी हो रहा है, शोक कर रहा है, खिन्न हो रहा है, शारीरिक बल से क्षीण हो रहा है, पीड़ित हो रहा है, परितप्त हो रहा है, यह सब उसने किया है। इस प्रकार वह अज्ञानी पुरुष कारण को मानकर स्वयं के दुःख को स्वकृत और पर के दुःख को परकृत मानता है।
मेधावी पुरुष कारण को मानकर इस प्रकार जानता है। मैं दुःखी हो रहा हूँ, शोक कर रहा हूँ, शारीरिक बल से क्षीण हो रहा हूँ, पीड़ित हो रहा हूँ, परितप्त हो रहा हूँ। यह सब मेरे द्वारा कृत नहीं है। दूसरा पुरुष जो दुःखी हो रहा है, शोक कर रहा है, खिन्न हो रहा है, शारीरिक बल से क्षीण हो रहा है, पीड़ित हो रहा है, परितप्त हो रहा है। यह सब उसके द्वारा कृत नहीं है। इस प्रकार वह मेधावी पुरुष कारण (नियति) को मानकर स्वयं के और पर के दुःख को नियतिकृत मानता है। नियतिवादियों के अनुसार जगत् का स्वरूप इस प्रकार है-पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं में जो त्रस और स्थावर प्राणी हैं वे सब नियति के कारण ही शरीरात्मक संघात, विविध पर्यायों (बाल्य, कौमार आदि अवस्थाओं), विवेक (शरीर से पृथक् भाव) और विधान (विधि विपाक) को प्राप्त होते हैं। वे नियतिवशात् काणा, कुबड़ा आदि नाना प्रकार की दशाओं को प्राप्त करते हैं। नियति का आश्रय लेकर ही नाना प्रकार के सुख-दुःखों को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार वे सब सांगतिक (नियतिजनित) हैं (सूत्रकृतांग, II.1.42-44 [421])।
बौद्ध ग्रंथों में भी गोशाल की नियतिवादी अवधारणा का उल्लेख हुआ है जिसमें नियति और संगति शब्द प्रयोग हुआ है- ....सत्त्वों के क्लेश (दुःख) का हेतु प्रत्यय नहीं है। बिना हेतु और प्रत्यय के ही सत्व (प्राणी) क्लेश पाते हैं। बिना