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महावीरकालीन अन्य मतवाद
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____निर्ग्रन्थों और शाक्य श्रमणों के बीच अनेक शास्त्रार्थ हुआ करते थे, जिनमें आर्द्रककुमार और शाक्यपुत्रों का वाद-विवाद प्रसिद्ध है (सूत्रकृतांग, II. 7वां अध्याय)।
तापस
__ वनवासी साधु तापस कहलाते थे। वे वहाँ ध्यान-साधना आदि करते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते और कंद मूल आदि खाकर जीवन व्यतीत करते। अनेक तापस आश्रमों का उल्लेख मिलता है। मोराग सन्निवेश आश्रम में भगवान महावीर भी अपनी विहारचर्या के दौरान रुके थे और उत्तरवाचाल स्थित कनकखल आश्रम में पांच सौ तापसों के रहने का उल्लेख मिलता है।'
जैन सूत्रों में अनेक प्रकार के वानप्रस्थ तपस्वियों के उल्लेख मिलते हैं(औपपातिक, 94 [490]), जो गंगा नदी के किनारे रहते थे। इस प्रकार हैं-1. होत्तिय-अग्निहोत्र करने वाले तापस। 2. पोत्तिय-वस्त्रधारी, 3. कोत्तिय-भूमि पर सोने वाले, 4. जण्णइ-यज्ञ करने वाले, 5. सड्ढइ-श्रद्धाशील, 6. थालई-सब सामान लेकर चलने वाले, 7. हुंबउड्ड-कुण्डी कमण्डल लेकर चलने वाले, 8. फल भोजन करने वाले 9. उम्मज्जक-उन्मज्जक मात्र से स्नान करने वाले अर्थात् कानों तक पानी में जाकर स्नान करने वाले, 10. सम्मज्जक-अनेक बार डुबकी लगाकर स्नान करने वाले, 11. निमज्जक-स्नान करते समय क्षण भर के लिए जल में डूबे रहने वाला, 12. सम्प्रक्षालक-शरीर पर मिट्टी घिसकर स्नान करने वाले, 13. दक्खिणकूलग-गंगा के दक्षिण तट पर रहने वाले, 14. उत्तरकूलग-गंगा के उत्तर तट पर रहने वाले, 15. संखधमक-शंख बजाकर भोजन करने वाले, 16. कूलधमक-किनारे पर खड़े होकर उच्च स्वर करते हुए भोजन करने वाले, 17. मृगलुब्धक-पशु-पक्षियों का शिकार कर भोजन करने वाले, 18. हत्थितापस-एक हाथी को मारकर, शेष जीवों पर दया करने के लिए वर्ष भर उसी से जीवन यापन करने वाले, (सूत्रकृतांग, II.6.52 [491]) 19. उड्ढडंक-दण्ड को ऊपर उठाकर चलने वाले,
1. J.C. Jain, Life in Ancient India as Depicted in the Jain Canon and
Commentaries, p. 300.