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नियतिवाद
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तीव्र मतवाद भी समस्त जनता के लिए अहितकर, दुःखमय, अनीतिकर एवं विनाशकारक ही है। ठीक वैसे ही, जैसे कि सब प्रकार के वस्त्रों में केश निर्मित कम्बल निकृष्ट होती है। वह कम्बल शीतकाल में शीतल, गर्मी में उष्ण तथा दुर्वर्ण, दुर्गंध, दुःस्पर्श वाली होती हैं (अंगुत्तरनिकाय, I.16.1, पृ. 50 एवं III.14.5, पृ. 375-76, बौ.भा.वा.प्र. [441])।
फिर भी यह तो निर्विवाद सत्य है कि वे उस समय के यशस्वी बहुजनों द्वारा सम्मानित ख्याति प्राप्त छः तीर्थंकरों में गिने जाते थे (दीघनिकाय, I.2.1.3, पृ. 41 [442]), और कल्पसूत्र में तो यहां तक आता है कि इनका धर्मसंघ भगवान महावीर के धर्मसंघ से कई गुना बड़ा था। एक अनुश्रुति के अनुसार गोशालक के श्रावकों की संख्या 11 लाख 61 हजार थी, जबकि महावीर के श्रावकों की संख्या 1 लाख 59 हजार थी। भगवती में इनके बारह प्रमुख श्रावकों का भी उल्लेख आता है (भगवती, 8.5.242 [443])।
यह उसके उदात्त व्यक्तित्व का ही प्रभाव था, जिसके कारण गोशालक की मृत्यु के पश्चात् भी आजीवकों का उल्लेख अभिलेखों में प्राप्त होता है। आजीवकों का सबसे प्राचीन उल्लेख अशोक (236 ई.पू.) के सातवें स्तम्भ लेख में प्राप्त होता है जो कि गया के निकट बारबर पहाड़ियों पर निर्मित गुफा की दीवारों पर अंकित है, जिसको अशोक ने अपने राज्य के तेरहवें वर्ष में आजीवकों को प्रदान की थी। अशोक के उत्तराधिकारी दशरथ ने भी नागार्जुन पहाड़ी पर आजीवकों के लिए गुफाएँ बनवाई और जिनमें आजीवकों को प्रदान किये जाने का लेख अंकित है।
इन तथ्यों से यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आजीवक संघ वृद्धि के क्या कारण रहे थे? जबकि गोशालक और उसके अनुयायियों का चरित्र-संयम बुद्ध और महावीर जितना उच्च नहीं था। उक्त तथ्यों के आलोक में यह कहा जा सकता है कि आजीवक संघ वृद्धि का एक कारण तो यह रहा होगा कि गोशालक अष्टांग निमित्त विद्या का ज्ञाता था और वह लोगों में इस विद्या से प्रसिद्धि प्राप्त किये हुए था। लोग निमित्त, शकुन, स्वप्न आदि का फल उससे पूछते थे।
1. आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन, भाग-1, पृ. 33. 2. कैलाशचन्द्र शास्त्री, जैन साहित्य का इतिहास, पृ. 252.