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नियतिवाद
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भाष्यकार पतञ्जलि ने इसके सम्बन्ध में विस्तृत व्याख्या की है। संभव लगता है मस्करी कहलाने वाले परिव्राजकों का एक सम्प्रदाय पाणिनी युग में अस्तित्व में था। यह शब्द केवल आजीवक सम्प्रदाय से ही संबंधित नहीं था, अपितु मंखलि गोशाल के सिवाय भी उस युग में जो दण्डधारी मस्करी कहलाते थे उन सबके अर्थ में प्रयुक्त होता था।
___सामान्यतः आजीविक या आजीवक शब्द का तात्पर्य है-आजीवका के लिए ही तपस्या आदि करने वाला। हॉर्नले ने आजीवक शब्द की व्युत्पत्ति 'आजीव' शब्द से मानी है। उनके शब्दों में आजीवक का तात्पर्य एक वर्ग विशेष, चाहे वे सामान्य गृहस्थ हो अथवा धार्मिक साधु, के जीवन या जीविका की पद्धति से है। आजीव से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो अपना जीवन अपने वर्ग के अनुकूल व्यतीत करता हो।
___ बरुआ के अनुसार भारतीय साहित्य में आजीवक शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है-1. विस्तृत अर्थ में परिव्राजकों के लिए, 2. संकुचित अर्थ में, अजितकेशकंबल, मंखलिगोशाल आदि पांच प्रमुख धार्मिक सम्प्रदायों के लिए और 3. अत्यन्त संकुचित अर्थ में गोशाल और उसके शिष्यों तथा अनुयायियों के लिए। उन्होंने भारतीय साहित्य में प्रचलित आजीवक के विभिन्न रूपों को चार श्रेणियों में इस प्रकार रखा-है-1. अचेलक साधु, जो अचेल, अचेलक खपणइ, क्षपणक, नग्न, नग्नपव्वज्जित नग्नक, नग्नक्षेपणक कहे जाते थे। 2. एक परिव्राजकों का समुदाय जो अपने साथ एक बांस की लकड़ी या एक लकड़ी रखता था और मस्करी, एदण्डी, एकदण्डी, लट्ठीहत्थ और वेणु परिव्राजक कहा जाता था। 3. सिरमुंडे वैरागी, जो घर-घर भिक्षा मांगते हैं और जिन्हें मुण्डियमुण्ड या 'घर मुंडनिय समण' कहा है। 4. संन्यासियों की एक श्रेणी, जिनके जीवन का व्यवसाय भिक्षावृत्ति था जो नग्नता को अपनी स्वच्छता और त्याग का एक बाह्य चिन्ह बनाये हुए थे, किन्तु अन्तरंग में एक गृहस्थ से अच्छे नहीं थे। उन्हें आजीव, आजीवक, आजीविय, आजीविक और जीवसिद्धी क्षपणक कहा है।
1. देखें, आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन, पृ. 35. 2. B.M. Barua, The Ajīvikās, Journal of the Department of Letters, Calcutta
University, II, 1920,p. 183.