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क्षणिकवाद
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है इसी प्रकार जगत् का प्रत्येक पदार्थ क्षणिक और क्षणभंगुर है। तत्त्वसंग्रह में शान्तरक्षित कहते हैं कि उत्पत्ति के अनन्तर वस्तु का जो अस्थायी स्वरूप होता है, उसे 'क्षण' कहते हैं तथा जिसमें क्षण होता है उसे क्षणिक कहते हैं (तत्त्वसंग्रह कारिका 388 [352])।
___क्षणिकवाद का अर्थ है-किसी भी वस्तु का अस्तित्व सनातन नहीं है। किसी वस्तु का अस्तित्व कुछ काल तक ही रहता है। क्षणिकवाद के अन्तर्गत जो बौद्ध दर्शन निहित है, वह निरपेक्षता एवं शाश्वतवाद का निःसंदेह खण्डन है। बौद्ध दर्शन निरन्तर परिवर्तन को ही वस्तुओं का स्वभाव मानता है। किन्तु यह परिवर्तन अकस्मात् न होकर कार्य-कारण नियम के अधीन है। बुद्ध ने इसी परिवर्तन को अनित्यवाद का नाम दिया है। बुद्ध के अनुयायियों ने इसी अनित्यवाद को क्षणिकवाद कहा, अतः क्षणभंगवाद प्रतीत्य समुत्पाद का ही विकास है।
__बौद्ध दार्शनिक वस्तु के लिए धर्म और क्षण शब्दों का भी प्रयोग करते हैं। प्रत्येक वस्तु कुछ गुणों का समूह या संघात मात्र होती है, उन गुणों के संघात या समूह के अतिरिक्त वस्तु की कोई सत्ता नहीं होती है। बौद्ध दर्शन में गुण को ही धर्म भी कहते हैं। जैसे रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि का संघात भौतिक पदार्थ कहलाता है और ज्ञान, राग, द्वेष, करुणा, वीर्य आदि का संघात चित्त कहलाता है। प्रत्येक वस्तु या धर्म क्षणिक अर्थात् एक ही क्षण रहने वाला है, अतः उपचार से उसे वस्तु क्षण या चित्त क्षण भी कहते हैं।'
. 1. जैन आगमों में क्षणिकवाद का प्रतिपादन क्षणभंगी पंचस्कन्धवाद
जैन आगमों में पंचस्कन्धवादी बौद्धों की क्षणिकवाद मान्यता का निरूपण हुआ है। उनकी मान्यतानुसार वे पंचखंध' क्षणयोगी (क्षणिक) हैं। वे स्कन्धों से अन्य आत्मा
1. आचार्य नरेन्द्रदेव, बौद्ध धर्मदर्शन, मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स, दिल्ली, 1956, पृ. 238. 2. धर्मचन्द जैन एवं श्वेता जैन, बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त, पृ. 46. 3. खंध जिसका संस्कृत नाम स्कन्ध है। सामान्यतया समूह अथवा समुच्चय के अर्थ में प्रयुक्त होता है। यद्यपि इसका शाब्दिक अर्थ वृक्ष या तना है, जो उपनिषदों में भी प्रयुक्त हुआ है (छान्दोग्योपनिषद्, 2.23.1 [353])।