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पंचम अध्याय
सांख्य मत 1. जैन आगमों में सांख्यमत का प्रतिपादन अकारकवाद
महावीर के समय में ऐसे मत का उल्लेख मिलता है, जो आत्मा के अस्तित्व को तो स्वीकार करते हैं किन्तु उसका कर्तृत्व नहीं मानते। मूल सूत्र में इसके किसी दर्शन विशेष का नाम प्राप्त नहीं होता। ऐसे मतवादियों के प्रामाणिक सन्दर्भ प्राप्त होते हैं
सूत्रकृतांग में अकारकवाद सिद्धान्त का उल्लेख हुआ है। इनके अनुसार आत्मा न कुछ करती है, न दूसरे से कुछ करवाती है। सबके साथ करने कराने की दृष्टि से आत्मा का कोई सम्बन्ध नहीं है। अतः आत्मा अकारक है (सूत्रकृतांग, I.1.1.13 [368])। चूर्णिकार जिनदासगणि महत्तर (7वीं ई. शताब्दी) ने इस मत को सांख्यदर्शन' सम्मत बताया है (सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 27 [369])।
1. इसके मूल प्रणेता महर्षि कपिल थे, जिन्हें क्षत्रिय पुत्र बताया जाता है और उपनिषदों आदि में जिसे अवतार माना गया है। कृतियाँ-सांख्य प्रवचन सूत्र तथा तत्त्व समास । समय-भगवान् महावीर व बुद्ध से पूर्व। 2. कपिल के साक्षात् शिष्य आसुरि हुए। समय-ई.पू. 600। 3. आसुरि के शिष्य पंचशिख थे। इन्होंने इस मत का बहुत विस्तार किया। कृतियाँ-तत्त्वसमास पर व्याख्या। समय-गार्वे के अनुसार ई.श. 1। 4. वार्षगण्य भी इसी गुरु परम्परा में हुए। समय ई. 230-300। वार्षगण्य के शिष्य विन्यवासी थे, जिनका असली नाम रुद्रिल था। समय-ई. 250-320। 5. ईश्वर कृष्ण बड़े प्रसिद्ध टीकाकार हुए हैं। कृतियाँ-षष्टितन्त्र के आधार पर रचित सांख्यकारिका या सांख्यसप्तति। समय-एक मान्यता के अनुसार ई. श. 2 तथा दूसरी मान्यता से ई. 340-3801 6. सांख्यकारिका पर माठर और गौड़पाद ने टीकाएँ लिखी हैं। 7. वाचस्पति मिश्र (ई. 840) ने न्याय वैशेषिक दर्शनों की तरह सांख्यकारिका पर सांख्यकौमुदी और व्यास भाष्य पर तत्त्व वैशारदी नामक टीकाएँ लिखीं। 8. विज्ञानभिक्षु एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। इन्होंने पूर्व के विस्मृत ईश्वरवाद का पुनः उद्धार किया। कृतियाँ-सांख्यसूत्रों पर सांख्य प्रवचन भाष्य तथा सांख्यसार, पातंजलभाष्य वार्तिक, ब्रह्मसूत्र के ऊपर विज्ञानामृत भाष्य आदि ग्रन्थों की रचना की। 9. इनके अतिरिक्त भी-भार्गव, वाल्मीकि, हारीति, देवल, सनक, नन्द, सनातन, सनत्कुमार, अंगिरा आदि सांख्य विचारक हुए। जैनेन्द्र सिद्धान्तकोश, भाग-4, पृ. 398.