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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद
परिव्राजकों के साथ सौगंधिका नगरी के मठ में ठहरा हुआ था। वहां वह सांख्य सिद्धान्तानुसार आत्मचिंतन करते हुए समय यापन करता था। उसका धर्म शौचमूलक था। वह दो प्रकार का था-1. द्रव्यशौच-जल और मिट्टी से तथा 2. भावशौच-दर्भ और मंत्रों से होता है। उसकी धारणानुसार कोई भी अपवित्र वस्तु ताजी मिट्टी से मांजने और शुद्ध जल से धोने से पवित्र हो जाती है तथा जल अभिषेक से पवित्र होकर प्राणियों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है (ज्ञाताधर्मकथा, I.5.52, 55 [395])।
उस युग में न केवल पुरुष परिव्राजकों का उल्लेख मिलता है अपितु साधना मार्ग में स्त्री परिव्राजिकाओं का भी अस्तित्व था। ज्ञाताधर्मकथा में चोक्षा नामक परिव्राजिका का भी उल्लेख मिलता है जो पूर्व परिव्राजकों की भांति वेद-वेदांग में निष्णात थी। वह मिथिला के राजा, सार्थवाह आदि के सामने दानधर्म, शौचधर्म और-तीर्थाभिषेक आदि का आख्यान, प्रज्ञापन करती हुई विचरण करती थी (ज्ञाताधर्मकथा, I.8.139-140 [396])।
उक्त तथ्य सांख्य सिद्धान्त और सांख्यश्रमणों की विहारचर्या, वेशभूषा आदि पर प्रर्याप्त प्रकाश डालते हैं। .
_____ औपपातिक में आठ ब्राह्मण और आठ क्षत्रिय परिव्राजकों का उल्लेख मिलता है-1. कण्डू, 2. करकण्डू, 3. अबंड, 4. पराशर, 5. कृष्ण, 6. द्वीपायन, 7. देवगुप्त और 8. नारद-ये आठ ब्राह्मण परिव्राजक हैं।
1. शीलकी, 2. मसिहार, 3. नग्नजित, 4. भग्नजित, 5. विदेह, 6. राजा, 7. राम और 8. बल-ये आठ क्षत्रिय परिव्राजक हैं।
इन परिव्राजकों को सांख्य, योगी, कपिल, भार्गव, हंस, परमहंस, बहुउदक, कुलीव्रत और कृष्ण परिव्राजक-इन सम्प्रदायों के अन्तर्गत माना है (औपपातिक, 96 [397])।
____ इन परिव्राजकों की तपश्चर्या का औपपातिक में विस्तार से निरूपण मिलता है। ये परिव्राजक चार वेदों, पांचवें इतिहास, छठे निघण्टु, छह वेदांग एवं उपांगों में सुपरिपक्व ज्ञानयुक्त होते थे। वे दानधर्म, शोचधर्म, पवित्रता और तीर्थ-स्थानों पर स्नान करने का कथन करते थे ताकि उस स्नान द्वारा जल से अपने आपको पवित्र कर निर्विघ्न स्वर्ग जाएँगे। उन्हें मार्ग में चलते समय कुएँ,