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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद
हे स्वामिन! यहां आओ। कुछ समय के लिए यहाँ बैठो, खड़े होवो। तो क्या तुम उस पुरुष की बात को स्वीकार करोगे? निश्चय ही तुम उस अपवित्र स्थान पर जाना नहीं चाहोगे। इसी प्रकार हे राजन्! देव लोक में उत्पन्न देव वहां के दिव्य काम भोगों में इतने मूर्च्छित, गृद्ध और तल्लीन हो जाते हैं कि वे मनुष्य लोक में आने की इच्छा ही नहीं करते। दूसरे देवलोक सम्बन्धी दिव्य भोगों में तल्लीन हो जाने के कारण उनका मनुष्य सम्बन्धी प्रेम विछिन्न हो जाता है अतः वे मनुष्य लोक में नहीं आ पाते। तीसरे देवलोक में उत्पन्न वे देव वहां के दिव्य कामभोगों में मूर्छित या तल्लीन होने के कारण अभी जाता हूँ-अभी जाता हूँ, ऐसा सोचते रहते हैं, किन्तु उतने समय में अल्पायुष्य वाले मनुष्य कालधर्म को प्राप्त हो जाते हैं, क्योंकि देवों का एक दिन-रात मनुष्य-लोक के सौ वर्ष के बराबर होता है। अतः एक दिन का भी विलम्ब होने पर यहाँ मनुष्य कालधर्म को प्राप्त हो जाता है। मनुष्य लोक इतना दुर्गंधित और अनिष्टकर है कि उसकी दुर्गंध के कारण मनुष्य लोक में देव आना नहीं चाहते हैं। अतः तुम्हारी दादी के स्वर्ग से नहीं आने पर यह श्रद्धा रखना उचित नहीं है कि जीव और शरीर भिन्न-भिन्न नहीं है।
केशीश्रमण के इस प्रत्युत्तर को सुनकर राजा ने एक अन्य तर्क प्रस्तुत किया। राजा ने कहा कि मैंने एक चोर को जीवित ही एक लोहे की कुम्भी में बंद करवाकर अच्छी तरह से लोहे से उसका मुख ढक दिया, फिर उस पर गरम लोहे और रांगे से लेप करा दिया तथा उसकी देख-रेख के लिए अपने विश्वासपात्र पुरुषों को रख दिया। कुछ दिन पश्चात् मैंने उस कुम्भी को खुलवाया तो देखा कि वह मनुष्य मर चुका था किन्तु उस कुम्भी में कोई भी छिद्र विवर या दरार नहीं थी, जिससे उसमें बंद पुरुष का जीव बाहर निकला हो, अतः जीव और शरीर भिन्न-भिन्न नहीं हैं।
इसके प्रत्युत्तर में केशीश्रमण ने निम्न तर्क प्रस्तुत किया-जिस प्रकार एक ऐसी कूटागारशाला, जो अच्छी तरह से आच्छादित हो और उसका द्वार गुप्त हो, यहाँ तक कि उसमें कुछ भी प्रवेश नहीं कर सके। यदि उस कूटागारशाला में कोई व्यक्ति जोर से भेरी बजाये तो तुम बताओ कि वह आवाज बाहर सुनायी देगी कि नहीं? निश्चय ही वह आवाज सुनायी देगी। अतः जिस प्रकार शब्द अप्रतिहत गति वाला है, उसी प्रकार आत्मा भी अप्रतिहत गति वाली है, अतः उसके शरीर से निकलने पर भी आभास नहीं होता अतः तुम यह स्वीकार करो कि जीव और शरीर भिन्न-भिन्न है।