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पञ्चभूतवाद
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तक चलता रहता है, इसलिए समस्त शुभाशुभ कर्मों का प्रतिफल तत्काल नहीं मिलता। अतः कर्मफल की धारणा के लिए आत्मवाद को मानना ही होगा।
3. हिंसा, झूठ, चौरी, डकैती आदि अपराध करने वाले लोग निःशंक होकर पाप में लीन रहेंगे। कारण कि उनकी आत्मा, शरीर तथा पापकर्म यहीं नष्ट हो जायेंगे तब परलोक में उन पापकर्मों का भुगतान करने के लिए उनकी आत्मा को नरक गति में नहीं जाना पड़ेगा। इस प्रकार संसार में अव्यवस्था, अनैतिकता और अराजकता का साम्राज्य फैल जायेगा।