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पञ्चभूतवाद
बताते हैं, जिसको सर्वप्रथम बृहस्पति ने अपने सिद्धान्त बताए, जिसका नाम चर्व से जुड़ा है। यह बुद्ध का पर्यायवाची भी माना गया है।' किन्तु सुरेन्द्रनाथ दासगुप्ता के मत में यह कहना कठिन है कि चार्वाक किसी जीवित व्यक्ति का नाम था या नहीं । महाभारत में सर्वप्रथम इस नाम का उल्लेख मिलता है, जहाँ चार्वाक को त्रिदंडी साधु ब्राह्मण के वेश में राक्षस कहा गया है, किन्तु उनके सिद्धान्तों के विषय में कुछ भी उल्लेख नहीं हैं । "
भारत में चार्वाक और पश्चिम में थेलिस, एनाक्सिमॉडर, एनाक्सिमीनेस आदि एक- जड़वादी तथा डेमोक्रेट्स आदि अनेक जड़वादी इस मान्यता को मानने वाले थे ।
पंचभूतों से चैतन्य की उत्पत्ति एवं विनाश
पंचभूतों से चेतना की उत्पत्ति कैसे होती है ? इसका जैन आगम समाधान नहीं देता । व्याख्या साहित्य में इसके सम्बन्ध में अवश्य ही प्रमाण उपलब्ध होते हैं । सूत्रकृतांगवृत्ति में पंचभूतवादियों के अनुसार सर्वजन प्रत्यक्ष इन पंचमहाभूत के अस्तित्व से कोई इन्कार नहीं कर सकता, न ही इनका खण्डन कर सकता है। ये पंचमहाभूत प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा जाने जा सकते हैं, इसलिए इन्हें कोई असत्य नहीं कह सकता है (सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 10 [206])। पंचभूतों के अतिरिक्त आत्मा का इन्द्रियों द्वारा साक्षात् ग्रहण नहीं होता पंचभूतों के समवाय में उनके मिलने पर जो चैतन्य प्राप्त होता है, अनुभूत होता है, वह देह के रूप में परिणत उन भूतों से ही अभिव्यक्त होता है। जैसे जिन पदार्थों के मिलने से मदिरा बनती है, वे पदार्थ जब मिल जाते हैं, तब उनमें
1. Kârvâka is given as the name of Râkṣkasas and he is treated as a historical individual to whom Bṛhaspati or Vakaspati delievered his doctrine........ Kârvâka is clearly connected with that of Kârva, and this is given as a synonym of Buddha. Maxmüüller, Six Systems of Indian Philosophy, p. 99.
2. S.N.Dasgupta, History of Indian Philosophy, Vol. III, p. 532.
3. This type of materialistic theory or epiphenonomical theory of consciousness and also the materialistic theory of reality could be found in the Cārvāka philosophers in India and in the Greek philosophers like Thales, Aneximander and Aneximanes. They were monistic materialists Domocratus was a pluraistic materialist, T.G. Kalghatgi, A Source Book in Jain Philosophy, Taraka Guru Granthalaya, Udaipur, 1983, p. 75.