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महावीरकालीन सामाजिक और राजनैतिक स्थिति
4. महावीरकालीन राजनीतिक प्रणाली
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600 ई.पू. का राजनीतिक इतिहास
600 ई.पू. के समय उत्तर भारत में कोई प्रबल / बड़ी सार्वभौम शक्ति नहीं थी। सम्पूर्ण देश अनेक छोटे-छोटे स्वतन्त्र राज्यों में बँटा हुआ था। यह समय प्राचीन भारतीय इतिहास में राजनीतिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था जो कि अन्त होती हुई जातियों की स्थिति का भी चित्रांकन करती है । पहली बार उन संगठित राज्यों का उदय हुआ जो सोलह बड़े 'महाजनपद' के नाम से जाने गए । इन राज्यों में कुछ निश्चित प्रादेशिक (राज्य संबंधी) इकाइयां बनी जो राज्यों के अधीन अर्थात् राजतंत्रीय और गणतंत्रीय दोनों ही शामिल थीं, जिनकी निश्चित राज्य सीमाओं, व्यवस्थित शासन तंत्र, शक्ति संचय और साम्राज्य - स्थापना के भी उल्लेख मिलते हैं ।
मजबूत शक्तियों ने शासन तंत्र के बीच अपनी जगह बनाई। ज्यादा क्या कहा जाए इन दोनों (राजतंत्रीय और गणतंत्रीय) ने शासकीय और अशासकीय सरकार का रूप धारण कर लिया। उस समय चार प्रभावशाली राजवंश थे - मगध में हर्यंक, कोशल में इक्ष्वाकु, वत्स (कौशाम्बी) में पौरव और अवन्ति में प्रद्योत । इन चारों की प्रतिद्वंदिता में मगध के प्रसिद्ध जैन शासक (सेनिय बिम्बिसार) और उनके पुत्र कूणिक अजातशत्रु के शासन काल में मगध में साम्राज्यवाद का उदय हो गया, जिससे गणतन्त्र का ह्रास हुआ । इस युग में विरोधी प्रतिस्पर्धी राज्य चीन में भी थे ।' छोटे राज्यों में- कुरु, पांचाल, शुरसेन, काशी, मिथिला, अंग, कलिंग, अशंक, गंधार और कंबोज थे। दो दूसरे साम्राज्य - हैहयस और विटिहोत्रस का उल्लेख पुराण में है किन्तु उनकी स्थिति निश्चित नहीं थी। संभवतः इनमें से एक अवन्ति और दूसरा चेदी साम्राज्य के द्योतक हैं ।
1. हर्यंक एक नये राजवंश का नाम था, जिसे मगध में बिम्बिसार ने बहिद्रथों को उखाड़ कर स्थापित किया था । प्रद्योत वंश का नाम उसके संस्थापक के नाम पर पड़ा। रमेशचन्द्र मजुमदार, प्राचीन भारत, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, [प्रथम संस्करण, 1962 ], द्वितीय संशोधित संस्करण, 1973, पृ. 74.
2. .......As in the period of the contending states in China, G. C. Pande, Studies in the Origines of Buddhism, p. 311.
3. R.C. Majumdar, The History and Culture of the Indian People, Vol. II, (The Age of Imperial Unity ), p. 1.