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महावीरकालीन सामाजिक और राजनैतिक स्थिति
अठारह प्रकार के व्यंजनों का भी उल्लेख हुआ है । स्थानांग के अनुसार ये सब व्यंजन थालीपागसुद्ध अर्थात् हांडी में पकाकर अपने माता-पिता, भर्तार ( पालन-पोषण करने वाले) तथा धर्माचार्य को प्रदान किये जाते थे (स्थानांग, 3.87 [76])। यद्यपि इन व्यंजनों का नामोल्लेख पूर्वक आगमों में विवरण नहीं मिलता है।
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राजाओं और धनिकों के यहां पर रसोइये विविध प्रकार के भोजन और व्यंजन बनाते थे। चावलों से बना हुआ ओदन और उसके साथ अनेक प्रकार के व्यंजन प्रतिदिन भोजन के काम में आते थे (उत्तराध्ययन, 12.34 [77]) । दशवैकालिक में नमक के अनेक प्रकारों का उल्लेख मिलता है - सौवर्चल, सैन्धव, लवण, रोम (खानों से निकाला हुआ), समुद्र, पांसुखार (मिट्टी से बनाया हुआ) और काला लोण ( काला नमक) इत्यादि ( दशवैकालिक, 3.8 [78])। मद्यपान एवं मांसभक्षण
इस युग में मद्यपान जन - सामान्य में बहुतायत रूप में प्रचलित था तथा जिसकी गिनती श्रेष्ठ भोजन में की जाती थी । अठारह प्रकार के भोजन की चर्चा पहले की जा चुकी है, जिनमें मद्य और मांस का भी उल्लेख है ।
जैन साधुओं को मद्यपान का सर्वथा निषेध था, लेकिन उपसर्ग, दुर्भिक्ष, बुढ़ापा, रोग आदि उपस्थित होने पर अपवाद मार्ग का अनुसरण कर वे मद्यपान सेवन करते थे
ज्ञाताधर्मकथा में शैलक अनगार के रूक्ष और तुच्छ भोजन करने के कारण उनका शरीर रोगग्रस्त हो जाता है। तब मंडुक राजा ने उन्हे यानशाला में रह उपचार कराने का निमंत्रण दिया । वैद्यों ने औषध, भेषज तथा भक्तपान से शैलक की चिकित्सा की साथ ही मद्यपान सेवन का भी निर्देश किया । फलस्वरूप वह स्वस्थ हो गया (ज्ञाताधर्मकथा, I - 5 - 110] 114 - 116 [ 79] ) । स्त्रियों के द्वारा भी मद्यपान किये जाने के उल्लेख मिलते हैं (उपासकदशा, 8.20 [80])।
इस युग में कुछ लोग मांसाहारी थे । उनको मांस-मछली अधिक पसन्द थी, जिसे गांवों से नगरों और शहरों में ले जाया जाता था, जहां वे खुले बाजार