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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद में बेची जाती थी। शिकारी चिड़ीमार, कसाई, मच्छीमारों का व्यापार जोरों से चलता था तथा वे अनेक प्रकार का मांस, मत्स्य और शोरवा तैयार कर बेचते थे। विपाकश्रुत के अनुसार मांस तलकर, मुंजकर, सुखाकर और नमक मिलाकर तैयार किया जाता था (विपाकश्रुत, I.2.24 [81])। मांस खण्डों को तक्र-छाछ से, आमलक-आंवले के रस से, द्राक्षारस, कपित्थ तथा अनार के रस एवं अन्य मत्स्य रसों से भी भावित संस्कारित करते थे (विपाकश्रुत, I.8.12 [82])।
उपासकदशा के श्रमणोपासक महाशतक की पत्नी रेवती मांस भक्षण में अति आसक्त थी। वह सुरा, मधु, मैरेय, मद्य, सीधु और प्रसन्ना का भक्षण कर अत्यन्त खुश होती तथा अपने पीहर के गोकुल में से प्रातःकाल दो बछड़े मारकर लाने का अपने नौकर को आदेश देती (उपासकदशा, 8.20, 22 [83])।
उत्तराध्ययन के रथनेमी अध्ययन में अरिष्टनेमि जब राजीमती से विवाह करने के लिए जा रहे थे, तो उन्होंने रास्ते में पशुओं की करुण चित्कार सुनी। पूछने पर ज्ञात हुआ-आपके बारातियों के खिलाने के लिए मारे जाने वाले पशुओं की यह चीत्कार है। यह सुनकर अरिष्टनेमि का अन्तर्मानस जाग उठता है और वे श्रमण दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं (उत्तराध्ययन, 22.14, 16-17 [84])।
___इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि उस युग में मांस-भक्षण सामान्यतः एक रिवाज तथा प्रमुख भोजन था। परन्तु जैन साधु अथवा श्रावक के लिए मदिरा एवं मांस भक्षण का सामान्यतः सर्वथा निषेध बताया गया है।
सूत्रकृतांग में आर्द्रक कुमार ने बौद्धों और हस्तितापसों के साथ चर्चा (शास्त्राथ) करते समय सब जीवों की दया के लिए तथा सावद्य दोषों का वर्जन करने
1. That during this period a large number of people were non-vegetarian is
proved by the discovery of bones at different archaelogical sites. They seem to have been very fond of meat and fish. There were butchers who earned their livelihood by killing various animals in the slaughter-house and by supplying their meat to the people. The flesh of goat, pig, sheep, and deer was much used. In certain sections of society and on special occasions, cows and oxen were also slaughtered, but the tendency to revere the cow and to spare the useful bull was gaining ground. The Jätaka stories mention pigeons, geese, herons, peacocks, crows and cocks as estables. A large number of people cherished fish diet. Meat and fish were carried in carts to the towns and cities where they were sold in the open market. K.C. Jain, Lord Mahāvīra and His Times, pp. 263-264.