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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद
प्राचीन जैन ग्रन्थों में विवाह कैसे किया जाए, इसका उल्लेख तो नहीं मिलता, किन्तु जैन धर्म में धार्मिक दृष्टि से वह स्वपत्नी या स्वपति सन्तोष व्रत (स्वदार व्रत) की व्यवस्था करता है (उपासकदशा, 1.27 [71])। जिसका तात्पर्य है व्यक्ति को अपनी कामवासना को स्वपति या स्वपत्नी तक ही सीमित रखना चाहिए। तात्पर्य रूप में यह कहा जा सकता है कि यदि ब्रह्मचर्य का पालन सम्भव न हो तो विवाह कर लेना चाहिए। एक अर्थ में यह भी कहा जा सकता है कि जैनों के लिए विवाह का अर्थ था अपनी वासना को संयमित करना। विवाह परम्परा जैनों के लिए ब्रह्मचर्य की साधना में सहायक होने के रूप में स्वीकार की जा सकती है। खान-पान
भारतवर्ष प्राचीनकाल से ही कृषि प्रधान देश रहा है। अतः यहां भोजन और भोज्य पदार्थों की प्रचुरता थी। किन्तु यह भी सच है कि सामान्य मनुष्य को उत्तम भोजन उपलब्ध नहीं होता था। खाद्य पदार्थ
सामान्यतः अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य-इन चार प्रकार के भोजन का उल्लेख जैन आगमों में आया है (I. स्थानांग, 4.288, 512, II. ज्ञाताधर्मकथा, I.7.6, II. दशवैकालिक, 5.1.47 [72])। आचारचूला में अनेक प्रकार के पानकों का उल्लेख मिलता है-तिलों का (धोया हुआ), उदक, तुषोदक, यवोदक, उबले हुए चावलों का ओसामण (मांड), कांजी का धोया हुआ जल, प्रासुक उष्ण जल तथा द्राक्षों का धोया हुआ पानी (धोवन) (आचारचूला, 1.7.370, ब्या.प्र. [73]), तथा आम्रफल का पानी, अंबाडक (आम्रातक) फल का पानी, कपित्थ (कैथ) फल का पानी, बिजौरे का पानी, द्राक्षा का पानी, दाडिम (अनार) का पानी, खजूर का पानी, नारियल (डाभ) का पानी, करीर का पानी, बेर का पानी, आंवले के फल का पानी, इमली का पानी (आचारचूला, 1.8.373, ब्या.प्र. [74])। इत्यादि पानी पानक। और भी अनेक प्रकार के पानक-उत्स्वेदिम (आटे का धोवन), संसेकिम (उबले केर का धोवन), तिलोदक, तुषोदक, यवोदक, ओसामण, सौवीरक (कांजी), शुद्धविकट (उष्णोदक) उस युग में प्राप्त थे (स्थानांग, 3.376-78 [75])। __आचार्य महाप्रज्ञ ने अशन, पान, खादिम, स्वादिम के अन्तर्गत पान/पाणक में साधुओं के लिए गर्म जल या पानक (तुषोदक, यवोदक सौवीर) को लिया है, जो साधुओं को उस युग में प्राप्य था।' 1. दसवेआलियं, 5.1.47 की टिप्पणी, पृ. 234, जैन विश्वभारती प्रकाशन।