________________
जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद
छठी शताब्दी ई.पू. में विवाह में वर अथवा उसके पिता द्वारा, कन्या के पिता अथवा उसके परिवार को शुल्क देना पड़ता था। ज्ञाताधर्मकथा में नगर के राजा प्रतिबुद्धि ने मिथिला की राजकुमारी मल्लि की कीमत आंकते हुए बताया कि सारा राज्य उसके लिए पर्याप्त होगा। मल्ली मुझे भार्या के रूप में वरण करे। फिर उसका मूल्य राज्य जितना भी न क्यों हो (I. ज्ञाताधर्मकथा, I.8.62, II. विपाकश्रुत, I.9.39 [62])। ज्ञाताधर्मकथा की पोट्टिला, मूषिकादारक नामक सुनार की कन्या थी। एक दिन स्नान आदि कर और सर्वालंकार विभूषित हो, प्रासाद पर बैठी हुई अपनी चेटियों के साथ गेंद खेल रही थी। इधर तेयलिपुत्र अश्व पर आरुढ़ हो अश्ववाहनिका के लिए जा रहे थे। तेयलिपुत्र पोट्टिला के रूप लावण्य को देखकर मुग्ध हो गया। उसने अपने विश्वस्त पुरुषों को बुलाकर मूषिकादारक के पास कन्या की मंगनी के लिए प्रस्ताव भेजा। उन्होंने जब कन्या के शुल्क के सम्बन्ध में प्रश्न किया तो कन्या के पिता ने उत्तर दिया-"मेरा यही शुल्क है कि स्वयं मंत्री मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं"। कुछ समय बाद शुभ तिथि मुहूर्त में इष्ट मित्रों के साथ तेतलिपुत्र के घर गया। वहां पर वर और वधू दोनों एक पट्ट पर बैठे, सोने-चांदी के कलशों से स्नान कराया गया, अग्निहोम हुआ और पाणिग्रहण सम्पन्न हुआ (ज्ञाताधर्मकथा, I.14.8-19 [63])।
माता-पिता द्वारा पुत्र के विवाह के अवसर पर प्रीतिदान दिया जाता था। ज्ञाताधर्मकथा में मेघकुमार के माता-पिता ने अपने पुत्र को विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मुक्ता, शंख विद्रम और पद्मराग आदि प्रीतिदान में दिये, जिन्हें मेघकुमार ने आठों पत्नियों में बांट दिये (ज्ञाताधर्मकथा, I.1.91 [64])।
__6ठी शताब्दी ई.पू. में प्रायः अधिकतर लोग एक पत्नीव्रत का पालन करते थे; किन्तु समाज के धनी और शासक वर्ग में बहु-विवाह प्रचलित था। राजा और राजकुमार अपने अन्तःपुर में एक से अधिक रानियों को रखने में अपना गौरव समझते थे। उपासकदशा में राजगृह के गृहपति महाशतक के रेवती आदि तेरह पत्नियां थी (उपासकदशा, 8.6 [65])। तथा अन्तकृद्दशा में राजा श्रेणिक की भी नन्दा आदि तेरह पत्नियों का उल्लेख आता है (अन्तकृद्दशा, VII.1-2 ब्यावर प्रकाशन [66])।
बौद्ध साहित्य में मज्झिमनिकाय के रट्ठपाल सुत्त में वर्णन है कि ब्राह्मण गृहपति के पुत्र रट्ठपाल की अनेक पलियां थी (मज्झिमनिकाय, मज्झिमपण्णासक, IV.32.10 [67])। 1. हर्षप्रद घटना के समय अथवा उत्सव आदि की सूचना देने वाले को दिया जाने वाला दान।