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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद
उत्तराध्ययन में एक चाण्डाल जाति का जैन भिक्षु ब्राह्मणों के यज्ञ से भिक्षार्थ जाकर उनको यज्ञ का आध्यात्मिक अर्थ समझाने में सफल होता है (उत्तराध्ययन, 12.3 [35])। सच्चे यज्ञ के लक्षण बताते हुए वे कहते हैं-जो पांच संवरों से सुसंवृत होता है, जो असंयमी जीवन की इच्छा नहीं करता, जो काय का व्युत्सर्ग करता है, जो पवित्र है और जो देह का त्याग करता है, वह यज्ञों में श्रेष्ठ महायज्ञ है। उनके अनुसार तप वास्तविक ज्योति (अग्नि) है, जीव ज्योति स्थान है। श्रुवा मन, वचन और काय का योग(चम्मचनुमा लकड़ी का पात्र, जिससे होम किया जाता है) है, शरीर करीष(कण्डे की अग्नि) है, समिधा कर्म है, संयम, योग और शांति होम है, धर्म सरोवर है और ब्रह्मचर्य वास्तविक तीर्थ है (उत्तराध्ययन, 12.42, 44 [36])। इस प्रकार महावीर ने अपने समय में प्रचलित ब्राह्मण, यति, जटी, मुण्डी, यज्ञ, जाति, श्रुवा, होम, सरोवर, तीर्थस्थान आदि शब्दों के जो अर्थ जनता में प्रचलित थे, उनको आध्यात्मिक दृष्टिकोण से नये रूप से प्रतिपादित किया।
महावीरयुग न केवल मतवाद बहुलता का युग था, अपितु वह धनपतियों का भी युग था। उस युग में धनपति, इभ्य, श्रेष्ठी, गृहपति, गाथापति, कौटुम्बिक आदि नाम से जाने जाते थे। जिनके पास अपार धन वैभव था। कितने ही गृहपति भगवान् महावीर के परम भक्त थे। नंद राजगृह का एक प्रभावशाली श्रेष्ठी था जिसने बहुत धन खर्च करके पुष्करणी का निर्माण कराया था। (ज्ञाताधर्मकथा, I.13.16 [37])। उपासकदशा में महावीर के दस उपासकों का उल्लेख है-आनन्द, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुंडकौलिक, सकडालपुत्र, महाशतक, नन्दिनीपिता और शाहिलीपिता (उपासकदशा, 1.6 [38])। जिन्हें गाथापति संज्ञा से भी अभिहित किया जाता था। इनके पास इतना वैभव था, जितना संभवतः आज के किसी श्रेष्ठी के पास हो कहना मुश्किल है। उपासकदशा के आनन्द गाथापति के बारे में उल्लेख आता है कि उसके पास अपरिमित हिरण्य-सुवर्ण, गाय, बैल, हल, घोड़ा, गाड़ी, यानपात्र थे तथा वह विविध भोगों का उपभोग करते हुए जीवन यापन किया करता था (उपासकदशा, 1.11 [39])। अतः इन गाथापतियों को प्राचीन भारत का वैश्य ही समझना चाहिए।
शुद्रों की स्थिति अत्यन्त निकृष्ट थी। इनका सभी जगह निरादर होता था तथा इनके साथ दासों सा व्यवहार होता था, ये लोग मुर्दे ढोने का काम किया करते थे। इनके लिए उत्तराध्ययन में कहा गया है कि मनुष्यों में चांडाल जाति अधम है, सब