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प्रस्तावना
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होकर अपनी सेना ले जा रहा था, तब उसे हार का अनागत कथन पहले से ही ज्ञात हो गया था । ग्रीक लोगों में विचित्र बातों को यथा-घोड़ी से खरगोश का जन्म होना, स्त्री को साँप के बच्चे का जन्म देना, मुरझाये फूलों का सम्मुख आना, विभिन्न प्रकार के पक्षियों के शब्दों का सुनना तथा उनका दिशा-परिवर्तन कर दायें या बायें आना प्रभृति बातें युद्ध में पराजय की सूचक मानी जाती थीं। इस साहित्य में शकुन और अपशकुन के सम्बन्ध में सुन्दर रचनाएँ हैं। फलित ज्योतिष के अंग, राशि और ग्रहों के बारे में ग्रीकों ने आज से कम-से-कम दो हजार वर्ष पहले पर्याप्त विचार किया था। भारतवर्ष में जब अष्टांग निमित्त का विचार आरम्भ हुआ, ग्रीस में भी स्वप्न, प्रश्न, दिक्शुद्धि, कालशुद्धि और देशशुद्धि पर विचार किया जाता था। इनके साहित्य में सन्ध्या, उषा तथा आकाशमण्डल के विभिन्न परिवर्तन से घटित होने वाली घटनाओं का जिक्र किया गया है।
ग्रीकों का प्रभाव रोमन सभ्यता पर भी पूरा पड़ा । इन्होंने भी अपने शकुन शास्त्र में ग्रीकों की तरह प्रकृति परिवर्तन, विशिष्ट-विशिष्ट ताराओं का उदय, ताराओं का टूटना, चन्द्रमा का परिवर्तित अस्वाभाविक रूप का दिखलाई पड़ना, ताराओं का लालवर्ण का होकर सूर्य के चारों ओर एकत्र हो जाना, आग की बड़ीबड़ी चिनगारियों का आकाश में फैल जाना, इत्यादि विचित्र बातों को देश के लिए हानिकारक बतलाया है । रोम के लोगों ने जितना ग्रीस से सीखा, उससे कहीं अधिक भारतवर्ष से ।
वराहमिहिर की पंचसिद्धान्तिका में रोम और पौलस्त्य नाम के सिद्धान्त आये हैं, जिनसे पता चलता है कि भारतवर्ष में भी रोम सिद्धान्त का प्रचार था। रोम के कई छात्र भारतवर्ष में आये और वर्षों यहाँ के आचार्यों के पास रहकर निमित्त और ज्योतिष का अध्ययन करते रहे । वराहमिहिर के समय में भारत में अष्टांगनिमित्त का अधिक प्रचार था । ज्योतिष का उद्देश्य जीवन के समस्त आवश्यक विषयों का विवेचन करना था। अतः अध्ययनार्थ आये हुए विदेशी विद्वान् छात्र अष्टांगनिमित्त और संहिताशास्त्र का अध्ययन करते थे। उस युग में संहिता में आयुर्वेद का भी अन्तर्भाव होता था, राजनीति के युद्ध सम्बन्धी दावपेंच भी इसी शास्त्र के अन्तर्गत थे । अतः रोम में निमित्तों का प्रचार विशेष रूप से हुआ । गणित प्रकिया के बिना केवल प्रकृति परिवर्तन या आकाश की स्थिति के अवलोकन से ही फल निरूपण रोम में हुआ है। शकुन और अपशकुन का विषय भी इसी के अन्तर्गत आता है । गेम के इतिहास में ऐसी अनेक घटनाओं का निरूपण है जिनसे सिद्ध होता है कि वहाँ शकुन और अपशकुन का फल राष्ट्र को भोगना पड़ा था।
इस प्रकार ग्रीस, रोम आदि देशों में भारत के समान ही निमित्तों का विचार