Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विषय
पृष्ठाङ्क ३ द्वितीय सूत्रका अवतरण, द्वितीय सूत्र और छाया । ४६२ ४ जिस भिक्षु का आचार इस प्रकार का होता है कि--
(१) जिसको किसीने वैयावृत्य करने की प्रेरणा नहीं की वह यदि अग्लान होगा और वह आकर मुझ ग्लान को निवे. दित करेगा कि मैं आपकी वैयावृत्ति करूँगा तो मैं साधर्मिकों द्वारा निर्जरा के लिये की जाती हुई वैयावृत्ति स्वीकार करूँगा। और अग्लान तथा दूसरों से अप्रेरित मैं ग्लान साधु की वैयावृत्ति अपने कर्मनिर्जरा की इच्छा से करूँगा उसके लिये आहारादि की गवेषणा करूँगा और दूसरों के लाये हुए आहार का भी स्वीकार करूँगा । (२) दूसरों के लिये आहारादि का अन्वेषण करूँगा और दूसरों के लाए हुए आहार का स्वीकार नहीं करूँगा। (३) दूसरों के लिये आहार का अन्वेषण नहीं करूँगा परन्तु दूसरों के लाये हुए आहार का स्वीकार करूँगा। (४) दूसरों के लिये आहार का अन्वेषण नहीं करूँगा और न दूसरों के लाये हुए आहार का स्वीकार ही करूँगा । इस प्रकार अभिग्रहधारी मुनि अपने अभिग्रह को पालते हुए, शान्त, विरत, होकर और अन्तःकरण की वृत्तियोंको विरुद्ध कर ग्लानावस्थामें भक्तप्रत्याख्यान से ही अपने शरीर का परित्याग करे। उस मुनि का वह कालपर्याय ही है। उस का इस प्रकार से शरीर त्याग करना विमोहायतन-महापुरुषकर्त्तव्य ही है और, हित, सुख, क्षम, निःश्रेयस एवं आनुगामिक ही है। उद्देश समाप्ति। ४६३-४६८
॥ इति पञ्चम उद्देश ॥
॥अथ षष्ठ उद्देश ॥ १ षष्ठ उद्देश का पञ्चम उद्देश के साथ सम्बन्धप्रतिपादन,
प्रथम सूत्र का अवतरण, प्रथमसूत्र और छाया। ४६९-४७०
श्री. मायाग सूत्र : 3