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उपलब्धियों के साथ जोड़ देते हैं तो कितनी अननुभूत सुख शान्ति के समीप पहुँच सकते हैं ? वास्तविक जीवन-विज्ञान के अभाव में ही मनुष्य ऐसी दुर्व्यवस्था का शिकार हो जाता है जिसका सम्यक् समाधान योग पद्धति के माध्यम से भव्य रीतिपूर्वक किया जा सकता है । परन्तु यह कब किया जायगा ? जब इस जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सहायक तत्त्वों का मूल्यांकन किया जायगा एवं सहायक तत्त्वों की प्रणाली तथा उससे सम्बन्धित जातीय - विजातीय स्वरूपों को विधिवत् विशुद्ध किया जायगा, तभी मनुष्य इस बात से सावधान हो सकेगा कि वह अशुद्धिकारक तत्त्वों को अपने शरीर तंत्र के भीतर प्रविष्ट न होने दे। एक बार बिगड़ी हुई कार्य प्रणाली को तभी व्यवस्थित कर सकते हैं जब कड़ी भूख लगने पर ही भोजन किया जाय अथवा आवश्यक लगे तो उपवास व्रत-पूर्वक अधिकाधिक प्राणवायु को ग्रहण करें ताकि सम्पूर्ण वायुसंस्थान पुनः सुव्यवस्थित बन सके।
अपने सम्पूर्ण सुप्रभाव के साथ जब प्राणवायु प्रत्येक अंग-प्रत्यंग में पहुँच जाती है तब उसका जीवन के महत्त्वपूर्ण अंग प्राणों के साथ सम्पर्क होता है । यह सम्पर्क साधक को सूक्ष्म परिधि के समीप पहुंचने में सहायक बनाता है। तब साधक को सूक्ष्म तथा सूक्ष्मतम अवस्थानों एवं उनके अन्तर्गत बनी ग्रंथियों को समझने व सुलझाने का सुअवसर मिल जाता है। यही नहीं, अन्ततोगत्वा उसे सच्चिदानन्द के समीप पहुँच जाने का सुअवसर भी मिल सकता है।
तात्पर्य यह कि शरीर के समस्त अवयवों की अपेक्षा भी श्वास-प्रश्वास सम्बन्धी प्रक्रियाएँ अधिक महत्त्व रखती हैं। इनकी सहायक क्रियाओं का भी बड़ा महत्त्व होता है । अतः साधक श्वास प्रणालिका को सर्वाधिक महत्त्व दे तथा उसका समुचित मूल्यांकन करे । इसके पश्चात् ही वह अपने पुरुषार्थ को सार्थक रूप से क्रियाशील बना सकेगा ।
श्वासानुसंधान
श्वास-प्रश्वास एक प्रकार से आन्तरिक क्रियातंत्र के संकेत चिह्न (कांटामापक यंत्र ) है । जैसे पेट्रोल की टंकी पर लगे कांटे से उसके भीतर रही हुई मात्रा का संकेत मिल जाता है, उसी प्रकार जीवन सम्बन्धी समस्त क्रियाकांडों का संकेत श्वास की गतिविधि से जाना जा सकता है। एक दृष्टि से भीतर के क्रियाकांड एक विशाल कारखाने की मशीनों और उनके कार्य के समान हैं। उस विशाल कारखाने की बड़ी-बड़ी मशीनों के बीच में अगर छोटे से छोटे तार में भी कहीं अवरोध पैदा हो जाय तो सारी मशीनरी पर उसका असर पड़ता है । उसी प्रकार इस शरीर तंत्र के भीतर होने वाली स्थूल अथवा सूक्ष्म क्रिया-प्रक्रियाओं के बीच में यदि किसी सूक्ष्म से सूक्ष्म नाड़ी तंत्र की क्रिया में 'अवरोध पैदा हो जाय तो उस रुकावट का समग्र शरीर विषयक क्रियाकलाप पर बुरा असर पड़ता है। इस असर की सूचना श्वास प्रणालिका से मिल सकती है। इस कारण इस प्रणालिका - विज्ञान का बहुत गहराई से अध्ययन अवश्यक है। इससे अवरोध के कारणों की, भलीभांति जानकारी हो सकेगी, बल्कि उन कारणों को दूर करने, तन्त्र को पुनः सुव्यवस्थित बनाने की प्रेरणा भी पैदा होगी।
श्वास प्रणालिका के माध्यम से, जिस प्रकार शरीर तन्त्र के भीतर चलने वाले क्रियाकलापों का प्रभाव जाना जा सकता है, उसी प्रकार मानसतन्त्र सम्बन्धी भावोर्मियों का प्रभाव भी श्वास की गति से अभिव्यक्त होता है। कोई व्यक्ति अपने ज्ञान केन्द्र किस भाव के साथ अपने क्रिया के माध्यम से, मानसतन्त्र को झंकृत करता हुआ, शरीर के क्रियाकलापों को प्रभावित बना रहा है, यह विज्ञान भी श्वास - विज्ञान की परिधि में आ जाता है।
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