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अध्याय दस
आत्म-समीक्षण के नव सूत्र
सूत्र : ९ :
शुद्ध, बुद्ध, निरंजन हूँ ।
मुझे सोचना है कि मेरा मूल स्वरूप क्या है और उसे मैं प्राप्त कैसे करूँ ?
शुद्ध स्वरूप के चिन्तन में मुझे प्रतिभासित होगा कि मैं दीर्घ, ह्रस्व, स्त्री, पुरुष या नपुंसक कहाँ हूँ और शब्द, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के आकार वाला भी कहाँ हूँ? मैं तो अशरीरी, अरूपी, शाश्वत, अजर, अमर, अवेदी, अखेदी, अलेशी आदि गुणों से सम्पन्न हूँ। मैं गुणाधारित जीवन का निर्माण करूँगा, मनोरथ-नियम के चिन्तन के साथ ज्ञानी व ध्यानी बनूँगा और अपने मूल आत्मस्वरूप को समाहित करने की दिशा में अग्रसर होऊँगा ।