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RAMORCEOIN
RABAR
अध्याय ग्यारह आत्म-समीक्षण के नव सूत्र
समता की जययात्रा
अग्गं च मूलं च विगिंच धीरे,
पलिछिंदियाणं णिक्कम्मदंसी। हे धीर, तू विषमता के प्रतिफल और आधार का निर्णय कर तथा उसका छेदन करके करमों से रहित अवस्था अर्थात् समता क द्रष्टा बन जा।
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