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चार गति चौरासी लाख जीव योनियों में भटकते हुए मुझे समझना है कि यह दुर्लभ मानव जीवन आदि किस पुण्योदय से प्राप्त हुआ है तथा जड़-चेतन संयोग, सुख दुःखानुभव एवं संसार के संसरण का क्या रूप है ? यह समझ कर मैं मूर्छा और ममत्व को हटाऊंगा, राग द्वेष और प्रमाद को मिटाऊंगा तथा अपने जीवन को सम्यक् निर्णायक,
समतामय व मंगलमय बनाऊंगा। (२) मैं प्रबुद्ध हुँ, सदा जागृत हूँ।
मुझे सोचना है कि मेरा अपना क्या है और क्या मेरा नहीं है ?
प्रबुद्धता की वेला में मुझे विदित होगा कि मिथ्या श्रद्धा, मिथ्या ज्ञान एवं मिथ्या आचरण मेरे नहीं हैं, परन्तु पर-पदार्थों के प्रगाढ़ मोह ने मुझे पाप कार्यों में फंसा रखा है। मैं मिथ्यात्व को त्यागूंगा, नवतत्त्व की आधारशिला पर सम्यक्त्व की अवधारणा लूंगा एवं आत्म-नियंत्रण, आत्मालोचना व आत्म-समीक्षण से अपने मूल गुणों को ग्रहण करता हुआ
संसार की आत्माओं में एकरूपता देखूगा। (३) मैं विज्ञाता हूँ, दृष्टा हूँ।
मुझे सोचना है कि मुझे किन पर श्रद्धा रखनी है और कौनसे सिद्धान्त अपनाने है ?
मेरी दृष्टि लक्ष्याभिमुखी होते ही जान लेगी कि मैं सत्य श्रद्धा और श्रेष्ठ सिद्धान्तों से कितना दूर हूं ? मैं सुदेव, सुगुरु एवं सुधर्म पर अविचल श्रद्धा रखूगा, श्रावकत्व एवं साधुत्व के पालन में सत्सिद्धान्तों के आधार पर अपना समस्त आचरण ढालूंगा और ज्ञान व क्रिया
के संयोग से निर्विकारी बनने में यलरत हो जाऊंगा। (४) मैं सुज्ञ हूँ, संवेदनशील हूँ।
मुझे सोचना है कि मेरा मानस, मेरी वाणी और मेरे कार्य तुच्छ भावों से ग्रस्त क्यों
अनुभूति के क्षणों में मुझे ज्ञात होगा कि जड़ग्रस्तता ने मेरी मूल महत्ता किस रूप में ढक दी है, मेरे पुरुषार्थ को कितना दबा दिया है और मेरे स्वरूप को कैसा विकृत बना दिया है ? यही मेरी तुच्छता हीन-भावना का कारण है जिसे मैं तपाराधन से दूर करूंगा, मन, वाणी व कार्यों में लोकोपकार की महानता प्रकटाऊंगा और ‘एगे आया' की दिव्य शोभा को
साकार रूप दूंगा। (५) मैं समदर्शी हूं, ज्योतिर्मय हूँ।
मुझे सोचना है कि मेरा मन कहाँ-कहाँ घूमता है, वचन कैसा कैसा निकलता है और काया किधर-किधर बहकती है ?
' अन्तर्ज्योति के जागरण से मुझे प्रतीति होगी कि अंधकार की परतों में पड़ा हुआ मेरा मन भौतिक सुख-सुविधाओं की ही प्राप्ति हेतु विषय-कषायों में उलझ कर कितना मानवताहीन,वचन कितना असत्य-अप्रिय तथा कर्म कितना द्विरूप-अधर्ममय हो गया है ? मैं दृढ़ संकल्प के साथ मन, वचन एवं काया के योगों को सम्पूर्ण शुभता की ओर मोड़ दूंगा तथा भावना के धरातल पर समदर्शी बनने का प्रयास करूंगा।
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