Book Title: Aatm Samikshan
Author(s): Nanesh Acharya
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 332
________________ कहलाते हैं क्योंकि उच्च पुरुष वे होते हैं जो धर्म, अर्थ एवं काम के पुरुषार्थों को सफल बनाते हुए मोक्ष के परम पुरुषार्थ को सफल बनाने के लिये भी कठोर साधना करते हैं। किन्तु जो मोक्ष और धर्म रूप पुरुषार्थों की उपेक्षा करके केवल अर्थ और काम रूप पुरुषार्थ में ही अपनी शक्ति का अपव्यय करते हैं, वे अधम पुरुष कहलाते हैं। वे लोग बीज को ही खा जाने वाले किसान-परिवार के समान होते हैं जो भविष्य में धर्मोपार्जित पुण्य के नष्ट हो जाने पर दुःख भोगते हैं। पुरुषार्थ का अन्तदर्शन करते हुए मेरी मान्यता बनती है कि अर्थ और काम यदि सर्वदा और सर्वत्र धर्म और मोक्ष के बीच में रहें तो वे कभी भी इस संसार में अनर्थकारी नहीं बन सकते हैं। आज जो दुष्कृत्यों भरा वातावरण दिखाई दे रहा है, वह इस कारण है कि धर्म पुरुषार्थ के साथ अर्थ पुरुषार्थ और काम पुरुषार्थ का प्रयोग नहीं किया जाता तथा मोक्ष पुरुषार्थ को विसार दिया जाता है। केवल अर्थ और काम पुरुषार्थ को महत्त्व दे देने से ही ये सारी वर्तमान परिस्थितियाँ विषम एवं विशृंखल बनी हुई हैं। यह मूल में भूल हो रही है। धर्म पहले, फिर अर्थ और काम तथा उनका भी परम प्रयोजन मोक्ष सदा ध्यान में रहे तो वैसे अर्थ एवं काम पुरुषार्थ से भी सांसारिकता के क्षेत्र में सुव्यवस्था का निर्माण हो सकेगा। अतः मेरा निश्चय है कि मैं सबसे पहले धर्म पुरुषार्थ में अपनी सफलता के चरण आगे बढ़ाऊं। मैं सदा अपने पुरुषार्थ के परम प्रयोग हेतु यल करता रहूँ एवं मोक्ष पुरुषार्थ की प्राप्ति का मनोरथ चिन्तता रहूं। मैं जानता हूँ कि मैं पुरुषार्थी हूँ, पराक्रमी हूँ। मेरा पुरुषार्थ कर्म क्षेत्र में आगे से आगे ही बढ़ना जानता है, पीछे हटना नहीं। मैं यह भी जानता हूँ कि जो अपने पुरुषार्थ का परम प्रयोग करके उसको सफल बना लेता है, वही शूर पुरूष कहलाता है। मैं भी शूर पुरुष बनना चाहता हूँ ताकि मेरे पुरुषार्थ का भी अपूर्व शौर्य प्रकाशित हो सके। आप्त वचनों के अनुसार शूर पुरुष चार प्रकार के होते हैं : (१) क्षमाशूर—जो अपने प्रबलतम विरोधी को भी पूरी हार्दिकता से क्षमा कर देते हैं। ऐसे क्षमाशूर अरिहन्त होते हैं जिनकी अनन्त क्षमा की इस धारा युग युगों तक प्रवाहित होती रहकर आत्माभिमुखी पुरुषों को प्रबुद्ध बनाती है। (२) तपशूर—तपशूर अनगार मुनिराज होते हैं जो अपने कठिन तप द्वारा अल्पतम समय में संचित कर्मों का अन्त कर देते हैं। वे अपने भाव शत्रु रूप कर्मों के लिये अपने आप को दृढ़ प्रहारी सिद्ध करते हैं। (३) दानशूर-जो निरन्तर दान देने में ऐसी भव्य उदारता दिखाते हैं कि उनकी दान देने की प्रवृत्ति अन्तहीन दिखाई देती है। उनके हृदय के त्याग भाव का उत्कृष्ट रूप उनकी दानशूरता में प्रकट होता रहता है। (४) युद्ध शूर-युद्ध शूर वे कहलाते हैं जो किसी भी प्रकार के धर्म युद्ध में अपूर्व शूरता का प्रदर्शन करते हुए विजयी बनते हैं। वे अपने विकारों तथा संसार के विकारों के साथ समान रूप से युद्ध करते हैं। मैं भी भावना भाता हूँ कि मैं क्षमा शूर, तप शूर, दान शूर और युद्ध शूर बनूंगा तथा अपने पुरुषार्थ के परम उत्कृष्ट स्वरूप को प्रकट करूंगा। मेरा यह पुरुषार्थ प्रयोग मेरे आत्म विकास ३०७

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