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(२) पंचेन्द्रियत्व — जंगम अवस्था ( द्वीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक) से निकल कर पंचेन्द्रियपना
प्राप्त होना ।
(३) मनुष्यत्त्व — पंचेन्द्रिय अवस्था प्राप्त होने के बाद भी नरक, तिर्यंच आदि गतियों से निकल कर दुर्लभ मनुष्य भव मिलना ।
(४) आर्यदेश - मनुष्य भव भी अनार्य (संस्कृतिविहीन) देश में न मिलकर धर्म संस्कृति से समुन्नत आर्य देश में मिले ।
(५) उत्तम कुल — नीच कुल की अपेक्षा धर्म क्रिया की यथासाध्य सामग्री जहां प्राप्त हो — ऐसे उत्तम कुल का प्राप्त होना ।
(६) उत्तम जाति - पितृपक्ष को कुल और मातृपक्ष को जाति कहते हैं जिसके अनुसार जाति भी सुसंस्कारयुक्त मिले।
(७) रूप-समृद्धि - पांचों इन्द्रियों की पूर्णता, समर्थता एवं सम्पन्नता को रूप समृद्धि कहते हैं ताकि धर्माराधना यथाविधि की जा सके। विकलांगता से धर्म क्रियाओं में बाधा पड़ती है।
मोक्ष तत्त्व का विचार उसके निम्न नौ द्वारों से भी किया जाता है
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(१) सत्पद प्ररूपणा - मोक्ष सत्स्वरूप है क्योंकि मोक्ष शुद्ध एवं एक पद है । एक पद वाले सभी सत्स्वरूपी होते है । इस द्वार का वर्णन चौदह मार्गणाओं द्वारा भी किया जाता है जो इस प्रकार है— गति (चार) इन्द्रिय (पांच) काय (छः ) योग (तीन) वेद (तीन) कषाय (चार) ज्ञान (आठ) संयम (सात) लेश्या (छः ) भव्य (दो) सम्यक्त्व (छः), संज्ञी (दो) तथा आहार (दो) । इन ६२ भेदों में से जीव को मोक्ष में पहुंचाने वाली मार्गणांए हैं—– मनुष्य गति, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस काय, भव्यसिद्धिक, संज्ञी, यथाख्यात चारित्र, क्षायिक सम्यक्त्व, अनाहारक, केवल ज्ञान और केवल दर्शन । कषाय, वेद, योग, और लेश्या मार्गणाओं से जीव कभी मोक्ष में नहीं जा सकता ।
(२) द्रव्य द्वार - सिद्ध जीव अनन्त हैं ।
(३) क्षेत्र द्वार - लोकाकाश के असंख्यातवें भाग में सब सिद्ध अवस्थित हैं।
(४) स्पर्शन द्वार - लोक के अग्रभाग में सिद्ध रहे हुए हैं ।
(५) काल द्वार - एक सिद्ध की अपेक्षा से सिद्ध जीव सादि अनन्त हैं और सब सिद्धों की अपेक्षा से सिद्ध जीव अनादि अनन्त हैं ।
(६) अन्तर द्वार - सिद्ध जीवों में अन्तर नहीं है । सब सिद्ध केवल ज्ञान और केवल दर्शन की अपेक्षा से एक समान हैं ।
(७) भाग द्वार - सिद्ध जीव संसारी जीवों के अनन्तवें भाग हैं ।
(८) भाव द्वार - सिद्ध जीवों में पांच भावों में से दो भाव केवल ज्ञान व केवल दर्शन रूप क्षायिक भाव तथा जीवत्त्व रूप पारिणामिक भाव ही होते हैं ।
(६) अल्प बहुत्त्व द्वार - सबसे थोड़े नपुंसक सिद्ध, स्त्री सिद्ध उनसे संख्यात गुणे अधिक तथा पुरुष सिद्ध उनसे संख्यात गुणे हैं ।
इस प्रकार मोक्ष के राजमार्ग तथा मोक्ष के स्वरूप पर मैंने चिन्तन किया है तथा ज्ञान लिया है कि क्रमिक विकास करती हुई आत्मा जब गुण स्थानों के सोपानों (गुणस्थानों का विस्तृत
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