________________
से आचरण सम्बन्धी कई जटिल समस्याओं का स्वतः ही समाधान निकल आता है और संयम साधना को बहुत बल मिलता है।
देह-मोह से दूर देह-मोह को सर्वथा दूर कर लेने का कठिन तप मैं मानता हूं छठे प्रकार के कायाक्लेश तप को। शास्त्र सम्मत रीति से शरीर को कष्टक्लेश पहुंचाना कायाक्लेश तप है। उग्र वीरासन आदि आसनों का सेवन करना, केशलोच करना, शरीर की शोभा सुश्रूषा का त्याग करना आदि कायाक्लेश तप के अनेक प्रकार होते हैं।
यों कायाक्लेश तप के तेरह भेद कहे गये हैं
(१) स्थानस्थितिक (ठाणट्ठिए) एक स्थान पर ठहर कर कायोत्सर्ग करना ध्यानावस्थित होकर रहना।
(२) स्थानातिग (ठाणाइये)-आसन विशेष से बैठकर कायोत्सर्ग करना। (३) उत्कुटुकासनिक (उक्कुडुयासणिए)–उक्कडु आसन से बैठना।।
(४) प्रतिमास्थायी (पडिमट्ठाई) एक मास की या दो मास की पड़िमा आदि स्वीकार करके विचरण करना।
(५) वीरासनिक (वीरासणिए)-सिंहासन अर्थात् कुर्सी पर बैठे हुए पुरुष के नीचे से कुर्सी निकाल लेने पर जो अवस्था रहती है, वह वीरासन कहलाता है। ऐसे आसन से बैठना।
(६) नैषेधिक (नेसजिए) निषेद्या (आसन विशेष) से भूमि पर बैठना । (७) दंडायतिक (दंडायए) लम्बे डंडे की तरह भूमि पर लेट कर तप आदि करना।
(८) लुगंडशायी—इस आसन में पैरों की दोनों एड़ियाँ और सिर पृथ्वी पर लगते हैं तथा बाकी का शरीर पृथ्वी से ऊपर उठा रहता है अथवा सिर्फ पीठ का भाग पृथ्वी पर रहता है और बाकी सिर-पैर आदि सारा शरीर जमीन से ऊपर रहता है। इस प्रकार के आसन से तप करना।
(E) आतापक (आयावए)-शीतकाल में शीत में बैठकर और ऊष्ण काल में सूर्य की प्रचंड गर्मी में बैठकर आतापना लेना। इस आतापना के तीन भेद हैं : (१) निष्पन्न लेट कर ली जाने वाली आतापना। तीन प्रकार—(अ) अधोमुखशायिता-नीचे की ओर मुख करके सोना। (ब) पार्श्वशायिता-पार्श्वभाग-पसवाड़े से सोना व (स) उत्तानशायिता-समचित ऊपर की तरफ करके सोना। (२) अनिष्पन्न–बैठकर आसन विशेष से आतापना लेना। तीन प्रकार—(अ) गोदोहिका—गाय दुहते हुए पुरुष का जो आसन होता है, वह गोदोहिका आसन है। इस प्रकार के आसन से बैठकर आतापना लेना। (ब) उत्कुटासनता–उक्कडु आसन से बैठकर आतापना लेना। (स) पर्यंकासनता—पलाथी मार कर बैठना। (३) ऊर्ध्वस्थित–खड़े रहकर आतापना लेना। तीन प्रकार—(अ) हस्तिशौंडिका-हाथी की सूंड की तरह दोनों हाथों को नीचे की ओर सीधे लटका कर खड़े रहना और आतापना लेना। (ब) एकपादिका एक पैर पर खड़े रहकर आतापना लेना। (स). समपादिका दोनों पैरों को बराबर रख कर आतापना लेना। इन निष्पन्न. अनिष्पन्न और ऊर्ध्वस्थित के तीन भेदों के उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य के भेद से प्रत्येक के तीन-तीन भेद और भी हो जाते हैं।
(१०) अप्रावृतक (अवाडइए) खुले मैदान में आतापना लेना।
३३०