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मूलतः क्रोध आत्मा के शुभ परिणामों का नाश करता है। वह सर्वप्रथम अपने स्वामी को जलाता है और बाद में दूसरों को। क्रोध से विवेक दूर भागता है और उसका विपरीत रूप अविवेक आकर जीव को अकार्य में प्रवृत्त करता है। क्रोध सदाचार को भी दूर करता है और मनुष्य को दुराचार में प्रवृत्ति करने को प्रेरित करता है। क्रोध वह अग्नि है जो चिर काल तक आराधित यम, नियम, तप आदि को पल भर में भस्म कर देती है। दोनों लोक बिगाड़ने वाला पापमय और स्व-पर का अपकार करने वाला यह क्रोध वास्तव में प्राणियों का महान् शत्रु है।
प्रमुख रूप से क्रोध को शान्त करने का एक ही उपाय है और वह है क्षमा। क्षमाभाव के आविर्भाव से शान्ति प्राप्त होती है और शान्त रह कर ही क्रोध पर विजय पाई जा सकती है। क्रोध को तात्कालिक रूप से शान्त करने के लिए इन उपायों का उपयोग किया जा सकता है : (१) क्रोध आते ही एकान्त में चला जावे (२) मौन होकर ध्यान करले (३) क्रोध न करने की अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण करे तथा प्रायश्चित रूप दंड का संकल्प ले (४) मन व विचार की दिशा बदल कर किसी अन्य कार्य में प्रवृत्त हो जावे अथवा (५) श्वास-निरोध द्वारा यौगिक क्रिया करे।
विनम्रता विनाशक मान (२) मान—जाति आदि गुणों में अहंकार बुद्धि रूप आत्मा के परिणाम को मान कहते हैं। मानवश छोटे बड़े के प्रति उचित नम्र भाव नहीं रहता है। मानी व्यक्ति अपने को बड़ा समझने लग जाता है और दूसरों को तुच्छ समझता हुआ उनकी अवहेलना करता है। गर्ववश वह दूसरों के गुणों. को भी सहन नहीं कर सकता हैं।
जैसे क्रोध के वश में हो जाने वाला मनुष्य सुख प्राप्त नहीं कर सकता है, वैसे ही मान के वश में हुआ मनुष्य भी शोक-परायण होता है अर्थात् हर समय चिन्तातुर रहता है। मान या मद आठ प्रकार का कहा गया है : (१) जाति मद (२) कुल मद (३) बल मद (४) रूप मद (५) तप . मद (६) विद्या मद (७) लाभ मद और (८) ऐश्वर्य मद । इनमें से किसी भी प्रकार का मद या मान करना नीच गौत्र कर्म के बंध का कारण होता है। मान विवेक को नष्ट करता है तथा आत्मा को शील-सदाचार से पतित बना देता है। वह विनय का भी नाश करता है तो विनय के साथ ज्ञान का भी। एक मानी अपने को मान के माध्यम से ऊँचा बनाना चाहता है लेकिन वह इस तथ्य को नहीं समझ पाता है कि उस से उसके सब कार्य नीच होते हैं।
__एक अभिमानी व्यक्ति (१) प्रदर्शन का आग्रही (२) अपमान का प्रतिशोधी (३) अहं का पुजारी (४) स्वयं का प्रशंसक (५) नाममोही (६) दूसरों को नीचा दिखाने की भावना वाला (७) अपनी आन्तरिक शक्तियों को नहीं पहिचानने वाला तथा (८) दूसरों से कुछ भी शिक्षा नहीं लेने वाला बन जाता है। इस वजह से वह इस प्रकार से हानि उठाता है : (१) उसके सद्गुणों का ह्रास होता है (२) उसकी उन्नति में अवरोध पैदा होते रहते हैं (३) उसकी वृत्तियाँ पापों के मूल तक पहुंच जाती हैं (४) उसके आत्म-विकास में बाधाएँ डाली जाती हैं (५) उसको समाज में सहयोग नहीं मिलता है (६) उसका मानी स्वभाव कई प्रकार की आसुरी वृत्तियों का जन्मदाता बन जाता है (७) उसकी ज्ञान प्राप्ति में व्यवधान आते रहते हैं तथा (८) उसके विनय गुण का नाश होता रहता है।
___ मान कषाय के भी चार प्रकार इस रूप में कहे गये हैं : (१) अनन्तानुबंधी मान -जैसे पत्थर का खंभा अनेक उपाय करने पर भी नहीं नमता, वैसे ही जो मान किसी भी उपाय से दूर नहीं
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