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अध्याय सात आत्म-समीक्षण के नव सूत्र
सूत्र : ६:
मैं पराक्रमी हूँ, पुरुषार्थी हूँ। मुझे सोचना है कि मैं क्या कर रहा हूँ
और मुझे क्या करना चाहिये? मेरा आत्मस्वरूप मूल रूप में सिद्धात्माओं जैसा ही है। मुझे देखना और परखना है कि यह मूल स्वभाव कितना विस्मृत हुआ है तथा विभाव कितना बढ़ गया है? अपने आन्तरिक स्वरूप एवं जागतिक वातावरण का द्रष्टा बनकर मैं आत्मशुद्धि का पुरुषार्थ दिखाऊँगा, शुभ परिवर्तन का पराक्रम प्रकट करूँगा एवं अहिंसा, संयम व तप रूप धर्म को धारण करके विश्व के समस्त प्राणियों के साथ समभाव बनाऊँगा तथा उनमें समभाव जगाऊँगा।