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जितना पानी) तैरने जैसा क्षुद्र कार्य ही कर पाते हैं। कुछ गोष्पद तैरने जैसा क्षुद्र संकल्प करके समुद्र तैरने जैसा महान् कार्य कर जाते हैं। कुछ गोष्पद तैरने जैसा क्षुद्र संकल्प करके गोष्पद तैरने जैसा ही क्षुद्र कार्य कर पाते हैं ।
(६) फल की तरह मनुष्य भी चार प्रकार के होते हैं। (अ) कुछ फल कच्चे होकर भी थोड़े मधुर होते हैं अर्थात् कुछ मनुष्य कम उम्र में भी साधारण समझदार हो जाते हैं। (ब) कुछ फल कच्चे होने पर भी पके की तरह अति मधुर होते हैं, याने कि लघु वय में भी बड़ी उम्र वालों की तरह पूरे समझदार हो जाते हैं। (स) कुछ फल पके होकर भी थोड़े मधुर होते हैं अर्थात् बड़ी उम्र में भी कम समझदारी रहती है। तथा (द) कुछ फल पके होने पर अति मधुर होते हैं याने बड़ी उम्र में पूरी समझदारी आ जाती है ।
(७) कुछ व्यक्ति अपना दोष देखते हैं, दूसरों का नहीं। कुछ दूसरों का दोष देखते हैं, अपना नहीं। कुछ अपना दोष भी देखते हैं दूसरों का भी । कुछ न अपना दोष देखते हैं, न दूसरों
का ।
(८) कुछ व्यक्तियों की मुलाकात अच्छी होती है, किन्तु सहवास अच्छा नहीं होता । कुछ का सहवास अच्छा रहता है, मुलाकात नहीं। कुछ की मुलाकात भी अच्छी होती है और सहवास भी। कुछ का न सहवास ही अच्छा होता है और न मुलाकात ही ।
(६) मेघ की तरह दानी मनुष्य भी चार प्रकार के होते हैं। (अ) कुछ बोलते हैं, देते नहीं । (ब) कुछ देते हैं, किन्तु कभी बोलते नहीं । (स) कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं। तथा (द) कुछ न बोलते हैं, न देते हैं ।
संख्या में न्यूनाधिकता होती है, किन्तु मनुष्यों में इस प्रकार के वर्ग प्रत्येक समय में मिलते हैं। इन वर्गों के परिप्रेक्ष्य में किसी भी समय की शुभता, अशुभता अथवा शुभाशुभता का निर्णय निकाला जा सकता है तथा ऐसे भिन्न-भिन्न उपाय भी निकाले जा सकते हैं जिनका प्रयोग भिन्न-भिन्न वर्गों के साथ सफलतापूर्वक किया जा सके तथा सभी वर्गों में संशोधन की एक-सी धारा प्रवाहित की जा सके।
मेरा मानना है कि उपरोक्त चार वर्गों में एक वर्ग इस प्रकृति का होता है, जो समाजहित को अपने स्वार्थों से ऊपर रखकर आवश्यकतानुसार त्याग के लिये भी तत्पर हो सकता है तो अपनी प्रबुद्धता एवं जागरूकता के आधार पर सामाजिक क्रान्ति का बीड़ा भी उठा सकता है। पहली जरूरत ऐसे ही वर्ग के मनुष्यों को संगठित करने की माई जानी चाहिये जो स्वयं आदर्शजीवी हों तथा आदर्श के लिये सर्वस्व न्यौछावर कर देने के अभिलाषी भी । ऐसे वर्ग का संगठन अवश्य ही समाज को नवसर्जन की दिशा देकर मानव में मानवता की संरचना का पुण्य कार्य सम्पन्न कर सकता
है।
सर्वत्र समभाव का जागरण
मानवता की संरचना एवं मानव मूल्यों की संस्थापना के साथ ही मेरा विचार है कि सामाजिक क्षेत्र में सहयोगात्मक वातावरण का प्रसार होगा तथा संविभाग की भावना भी जन्म लेगी। इससे अर्जन एवं जीवन निर्वाह की पद्धति में भी शुभ परिवर्तन आयगा कि सत्ता या सम्पत्ति के
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