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चाहता है तो अधिक अर्जन पर प्रतिबंध लगाकर सामाजिक सम्पति का संविभाग अथवा समूह के लाभार्थ नियोजन करने की प्रणाली बनाता है। समाज सुधार के कार्यक्रम भी कुरीतियों को समाप्त कर सबकी समानता को प्रोत्साहित करने वाली परम्पराओं को ढालना चाहते हैं। मूल में सभी नागरिकों के बीच समानता का वातावरण बनाने का सभी सामाजिक नीतियों का प्रयास कहा जाता
है ।
और समानता या समता का वातावरण ही वह प्रधान केन्द्र है जहां से मानवता का झरना फूटता है। इस समानता के लिये व्यक्ति के छोर से धर्मनीति कार्य करे और समूह के छोर से सामजिक नीतियों का प्रयोग किया जाय तो समता के प्रसार तथा मानवता के निर्माण कार्य से सारपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है।
एक बात यह भी कि चाहे धर्मनीति का क्षेत्र हो या समाज नीतियों का क्षेत्र वहां पर दोनों प्रकार की वृत्तियों वाले व्यक्ति मिलेंगे। सद् एवं असद् दोनों प्रकार की वृत्तियों के व्यक्ति, बल्कि असद् वृत्ति के व्यक्तियों का बाहुल्य ही होगा। अतः सर्वत्र सत्कार्य को उभारने और आगे बढ़ाने का बीड़ा तो सद् वृत्ति वाले प्रबुद्ध एवं सज्जन व्यक्तियों को ही उठाना पड़ेगा जो आत्म-भोग देकर भी स्व-पर कल्याण के योग्य वातावरण का सृजन करते हैं। सभी क्षेत्रों में सामान्य रूप से सत्प्रचार द्वारा ऐसा जनमत बनाया जाना चाहिये जो प्रबुद्ध व्यक्तियों को उनके सत्कार्य में सक्रिय या मौन सहयोग दे सके। मानव के मन में मानवता जागृत हो एवं स्थिर रूप ग्रहण करे - यह लक्ष्य सूर्य के प्रकाश की तरह स्पष्ट होना चाहिये ।
आन्तरिक रूपान्तरण का पुरुषार्थ
आत्म स्वभाव एवं विभाव तथा धर्म एवं नीति सम्बन्धी विस्तृत विवरण को दृष्टिगत रखते हुए मैं सोचता हूं कि मुझे सबसे पहले अपने पुरुषार्थ को अपने ही आन्तरिक रूपान्तरण के लिये लगाना चाहिये। क्या होगा यह आन्तरिक रूपान्तरण ? अपने भीतर के रूप को बदलना । जब किसी रूप को बदलना है तो यह जानना जरूरी कि अभी वह रूप कैसा है और उसे बदल कर कैसा बनाना है? यह रूप है आन्तरिक रूप मन-मानस की भीतरी विचारणा का रूप अर्थात् सामान्य रूप से सोच-विचार का रूप । जब सोच-विचार के रूप को भली प्रकार जानना चाहूंगा तो उसे बाहर के अपने क्रिया कलापों से जानना आसान रहेगा ।
इस दृष्टि से मुझे सोचना है कि मैं क्या कर रहा हूं और मुझे क्या करना चाहिये ? इस सोच में दो बिन्दु हैं । एक तो है आन्तरिकता का वर्तमान रूप तथा दूसरा है रूपान्तरण क्या होना चाहिये ?
आन्तरिकता के वर्तमान रूप के लिये मुझे मेरे क्रिया कलापों का तथा क्रियाकलापों से अपनी वृत्तियों का लेखा जोखा लेना होगा, किन्तु इस लेखे जोखे के लिये, उसका आंकड़ा तैयार करने के लिये तथा रूपान्तरण का आधार सुनिश्चित करने के लिये मुझे योग्य मानदंड की आवश्यकता होगी। किस क्रिया-कलाप को नामे की तरफ लिखूं, किसको जमा की तरफ और क्यों ? आंकड़े में भी क्या लाभ दिखाऊं और क्या हानि ? रूपान्तरण का भी वस्तु विषय चाहिये कि वर्तमान को बदलूं तो भविष्य की क्या रूपरेखा हो ?
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