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सूत्र तीसरा
मैं विज्ञाता हूँ, क्योंकि ज्ञान और विज्ञान का महासागर मेरे भीतर तरंगित हो रहा है। ऐसा महासागर जिसमें अनन्त सीपियाँ अपने मुंह बंद किये विश्राम कर रही हैं। उनमें अनन्त मोती हैं परन्तु बन्द हैं। ये ज्ञान विज्ञान के मोती- अमूल्य मोती हैं ।
परन्तु प्रश्न यह है कि क्या मैं इस रहस्य को जानता हूँ या इस रहस्य से मैं अभी तक अनभिज्ञ ही हूँ ? इस अवसर पर मुझे एक कथा याद आ रही है। एक हीरों की खान थी बिना खोदी हुई। कोई नहीं जानता था कि इस छोटी सी टेकरी के नीचे बहुमूल्य हीरे दबे पड़े हैं। एक महात्मा ही उसे जानता था जो टेकरी पर बैठा हुआ था। उस ओर से एक आदमी गुजर रहा था, महात्मा ने उसे बुलाया और कहा— भद्र, यहाँ आओ और यहाँ से भूमि को खोदो – नीचे हीरों की खान है। एक ही प्रयत्न में तुम्हारा जन्म-जन्मों का दारिद्र्य समाप्त हो जायेगा। उस आदमी ने जैसे सुना ही नहीं और यह कहते हुए आगे चला गया कि क्यों राह से गुजरने वालों को पागल बनाते हो ? यदि तुम कहते हो, वैसा ही है तो तुम ही क्यों नहीं खोद लेते हो ?
थोड़ी देर बाद एक दूसरा आदमी वहाँ से निकला । उसे भी महात्मा ने वही बात कही । उसने महात्मा की बात ध्यान से सुनी और अपना उत्साह भी प्रकट किया। महात्मा ने उसे एक कुदाली भी दे दी। वह उस टेकरी को खोदने लगा। कुछ मिट्टी खोदकर वह खड़ा हो गया। तब महात्मा ने कहा— भद्र, अभी तो बहुत खोदना होगा। हीरे बहुत गहराई में पड़े हुए हैं। उसने अपने माथे से पसीना पोंछा और आलस्य से बोला – मैं तो बुरी तरह से थक गया हूँ। कौन जाने, आप सच कह रहे हैं ? फिर एक अविश्वास भरी नजर महात्मा पर फेंकी और धीरे धीरे वहाँ से चला गया ।
फिर आया तीसरा आदमी । उसके चेहरे पर ओज झलक रहा था। महात्मा ने उससे भी वही बात कही। वह रुक गया और महात्मा को उसने नमस्कार किया, फिर बोला- आपने मुझे अपूर्व जानकारी दी है इसके लिए आपका कृतज्ञ हूँ। तब उसने महात्मा के पैर छुए और कुदाली हाथ में पकड़ ली। वह खोदता गया, खोदता चला गया बिना रुके, बिना अश्रद्धा बताये और बिना थकान दिखाये। महात्मा मुस्कराते जा रहे थे और वह जैसे उस मुस्कराहट से अधिकाधिक ऊर्जा ग्रहण करते हुए अथक परिश्रम करता चला जा रहा था। परिश्रम पुरुषार्थ में और पुरुषार्थ पराक्रम में बदलता गया । जब पराक्रम परम ओजस्वी बन जाय तो कौनसा ऐसा लक्ष्य होगा जो लक्षी के चरणों में न आ गिरे ? उसका पराक्रम सफल हो गया । बहुमूल्य हीरे चरणों पर लोट गये ।
महात्मा ने तीनों को एक सा ज्ञान दिया । एक ने विश्वास ही नहीं किया। दूसरे ने विश्वास किया पर छिछला और क्षुद्र कि वह जल्दी ही उखड़ गया । प्रमाद ने उसे आ घेरा और वह क्लान्त हो उठा। लेकिन तीसरे ने उस ज्ञान के प्रति गहरा विश्वास किया और परिश्रम में जुट गया। यदि वह भी हीरों की बात जान कर उसे मानता नहीं और मानकर उन्हें निकाल लेने का पुरुषार्थ नहीं करता तो क्या वह हीरों को प्राप्त कर सकता था ?
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