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सम्पूर्ण आत्माएं ‘एगे आया' की दिव्य शोभा को साकार रूप दे दे। ये नव सूत्र गूढ़ चिन्तन के मोती हैं और प्रत्येक भव्य आत्मा को चिन्तन में निमज्जित बनाकर नये-नये मोती खोज लाने की भी ये नव तत्त्व अवश्य ही प्रेरणा देते हैं।
यह एक सत्य है कि वीतराग देवों ने आत्म विकास की महायात्रा के सम्बन्ध में स्वानुभव के साथ सम्पूर्ण ज्ञान पाकर विधि विधान प्रदान किया है कि कैसे यह महायात्रा मन, वचन एवं काया के सुव्यवस्थित योग-व्यापार के साथ संचालित की जाय तथा कैसे इस महायात्रा को संयम एवं तप की कठिन आराधना से सफल, सम्पूर्ण और सिद्ध बनाई जाय? फिर भी वह गूढ़ ज्ञान आज के साधक के मन-मानस में भी स्पष्ट होना चाहिये। इन नव सूत्रों के निरूपण में यह लक्ष्य भी सामने रखा गया है कि वीतराग देवों का ज्ञान ही सरल शैली में साधक आत्मसात् कर ले।
नव-सूत्रों के नौ अध्यायों के पश्चात् 'समता की जय यात्रा' के शीर्षक से सम्पूर्ण विवेचन का उपसंहार किया गया है कि आत्म-समीक्षण की पूर्णाहुति समता की सदा एवं सर्वदा जय यात्रा में ही प्रकट होनी चाहिए?
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