Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
१७
" करनेपर
तथा अर्थ पदके न देनेसे तत्त्वश्रद्धानके षष्ठी तत्पुरुष सप्तमी ष " या भाष
तत्त्वोंका श्रद्धान, तत्त्वमें श्रद्धान, और करके श्रद्धान ये दूसरे, तीसरे, चौथे, पक्ष भी भले प्रकार घटित नहीं होते हैं। क्योंकि किस तत्त्वका और किस तत्त्वमें तथा किस तत्त्वकर के इस प्रकार के प्रश्नोंकी विशेषरूप से निवृत्ति नहीं होने पाती है । किन्तु अर्थके कह देनेपर और उस अर्थका तत्व विशेषण लगाने से तत्त्वकरके निर्णीत अर्थका श्रद्धान करना यदि सम्यग्दर्शनका लक्षण सूत्रकारने कह दिया है, तब कोई भी दोष नहीं है | दर्शनमोहनीय कर्मके उदयसे रहित हो रहे आत्मा के स्वाभाविक स्वरूपको तत्त्वार्थीका श्रध्दान करना इस शद्वसे कहा गया है । यह निर्दोष लक्षण सभी "सम्यग्दर्शनोंमें घटित हो जाता है । प्रशम, सम्बेग, अनुकम्पा और आस्तिक्य इन गुणोंसे प्रकट होने योग्य सराग सम्यग्दर्शनमें तत्त्वार्थश्रध्दान है और केवल स्वानुभूतिके साथ रहनेवाले आत्मविशुध्दिरूप वीतरागसम्यग्दर्शनमें भी वह तत्त्वार्थ- श्रध्दान विद्यमान है । अतः रपष्टरूपसे अव्याप्ति दोषका सर्वथा नाश हो जाता है और अतिव्याप्तिका वारण हम पूर्वमें कर ही चुके हैं । इस प्रकार सूत्रकारने निर्दोष स्वरूपसे सम्यग्दर्शनका लक्षण कहा है । व्यर्थके आक्षेप उठाना न्यायोचित नहीं है ।
कथं तर्हि तत्वेनार्थो विशेष्यते । इत्युच्यते
यहां कोई विनीत शिष्य प्रश्न करता है, तो आप बतलाइये कि तत्त्वरूप विशेषण करके अर्थ किस प्रकारसे विशिष्ट हो जाता है ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर आचार्य महाराज उत्तर कहते हैं
यत्त्वेनावस्थितो भावस्तत्त्वेनैवार्यमाणकः ।
तत्त्वार्थः सकलोन्यस्तु मिध्यार्थ इति गम्यते ॥ ५ ॥
जिस जिस स्वभाव करके जीव आदिक भाव व्यवस्थित हो रहे हैं उस ही स्वभाव करके गम्यमान या ज्ञायमान होते हुए वे सभी तत्त्वार्थ हैं । अन्य असत् और कल्पित स्वभावों करके जाने गये अर्थ तो झूठे अर्थ हैं । यह तात्पर्यसे जान लिया जाता है । सूत्रकारके शब्द अत्यन्त गम्भीर हैं । एक एक पदमें लाखों मन अर्थ भरा हुआ है । विद्वान् अनेक टीका ग्रंथोंको उसी छोटे सूत्रमेंसे निकाल लेते हैं। फिर भी बहुतसा अर्थ सूत्रमें अवशेष रह जाता है । प्रकृत सूत्रमें पडे हुए तत् शब्दका अर्थ अतीव उदात्त है । यत् और तत्का नित्य सम्बन्ध है । तत्के भावसे ही निर्णीत किया गया · अर्थ तत्त्वार्य है ।
तदिति सामान्याभिधायिनी प्रकृतिः सर्वनामत्वात् । तदपेक्षत्वात्प्रत्ययार्थस्य भावसामान्यसम्प्रत्ययस्तत्त्ववचनात् तस्य भावस्तत्त्वमिति, न तु गुणादिसंप्रत्ययस्तदनपेक्षस्वात् प्रत्ययार्थस्य ।
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