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उनको मुखका कुछ दुख ही नहीं लगता तब उन्हें भोजन करने की क्या भावश्यकता ? यानी कुछ आवश्यकता नहीं । __दुसरा कारण इसलिये नहीं है कि अर्हन्त भगवान्के ज्ञानावरण कर्म नष्ट हो जाने से अनन्त, अविनाशी केवलज्ञान उत्पन्न हो गया है वह कभी न तो कम हो सकता है और न नष्ट हो सकता है जिससे कि उनको भोजन करना आवश्यक हो । ___ तीसरा कारण इसलिये नहीं है कि अंतराय कर्म न रहनेसे उनके अनंत बल उत्पन्न हो गया है इस कारण वे यदि भोजन न भी करें तो उनका बल कम नहीं हो सकता ।
चौथा कारण इस लिये नहीं है कि वे आयु कर्म नष्ट होनेके पहले किसी भी प्रकार शरीर छोड ( मर ) नहीं सकते क्योंकि केवली भगवान की अकालमृत्यु नहीं होती है ऐसा आप श्वेतांबरी भाई भी मानते हैं। फिर जब कि उनकी आयु पूर्ण होनेके पहले केवली भगवान् की मृत्यु ही नहीं हो सकती तब भोजन करना व्यर्थ है । भोजन न करने पर भी उनका कुछ बिगाड नहीं। . इस कारण केवली भगवानको कबलाहार मानना निरर्थक है । भोजन करनेसे उन्हें कुछ लाभ नहीं । फिर वे निष्प्रयोजन कार्य क्यों करें। क्योंकि "प्रयोजनमनुद्दिश्य मंदोपि न प्रवर्तते " यानी विना मतलब विचारा मूर्ख ( अल्पबुद्धि ) आदमी भी किसी काममें प्रवृत्त नहीं होता है।
केपलीकी भोजनविधी. श्वेताम्बर भाई कहते हैं कि केवली भगवान् अपने लिये भोजन लेने स्वयं नहीं जाते किंतु उनके लिये गणधर या इतर कोई मुनि भोजन ले आते हैं । उस भोजनको अर्हत भगवान् दिनके तीसरे पहर यानी १२ बजेके पीछे ३ बजे तक के समयमें खाते हैं। अर्हन्त भगवानके भोजन करनेके लिये देवच्छन्दक' नामका स्थान बना होता है उसपर बैठकर भोजन करते हैं। अतिशयसे भोजन करते हुए पे इन्द्र या दिव्यज्ञान धारी मुनिके सिवाय किसीको दिखलाई नहीं देते ।
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