________________
नेके लिये लकडीके पात्र तथा अपने पास एक लाठी भी रखते हैं।
स्थानकवासी साधुओं का अन्य सब रूप श्वेताम्बरीय साधुके समान होता है किन्तु वे अपने मुखसे एक कपडा बांधे रहते हैं जिसका उद्देश उनके कथनानुसार यह है कि बोलते समय मुखकी वायुसे वायु. कायिक जीवों का धात न होने पावे। तथा वे अपने पास लाठी भी नहीं रखते हैं।
श्वेताम्बरीय साधु श्वेत वस्त्र अपने पहनने ओढनेके लिये अपने पास श्वेतवस्त्र रखते हैं इस कारण उनका नाम श्वेताम्बर यथार्थ है।
साधुओंके दिगम्बर, श्वेताम्बर रूपकी मान्यताके कारणही दोनों सम्प्रदायोंका नाम दिगम्बर तथा श्वेताम्बर पड गया है । अस्तु ।
दिगम्बर संप्रदायके आगम ग्रंथों ने वस्त्र आदि पदार्थोंको बाह्य परिग्रह बतलाया है इस कारण महाव्रतधारी साधुके अंतरंग परिग्रहक त्याग करानेके लिये उन वस्त्रोंका त्याग कर देना अनिवार्य प्रतिपादन किया है । इसी कारण दिगम्बर सम्प्रदायका मनुष्य महाव्रतधारी साधु होता है वह वस्त्र त्याग कर ही साधु होता है ।
. श्वेतांबरीय ग्रंथ ( तत्वाथाधिगम आदि ) अपने सच्चे हृदयसे तो कपडे आदि पदार्थोको परिग्रहरूप ही बतलाते हैं अत एव सर्वोच्च जिनकल्पी साधु दशा प्राप्त करनेके लिए उनका त्याग कर नग्नरूप धारण कर लेना अनिवार्य बतलाते हैं।
परन्तु इस सत्य समाचारपर पर्दा ढालते हुए कुछ श्वेतांवरीय ग्रंथ अपने निम्न श्रेणीके वस्त्रधारी साधुओंके परिग्रहत्याग महाव्रतकी रक्षा करनेके उद्देशसे वस्त्रोंको परिग्रह रूप नहीं बतलाते हैं । मानसिक ममत्व परिणामको ही वे परिग्रह कहते हैं। किंतु यह बात कुछ बनने नहीं पाती है । ____ महाव्रतधारी साधुके वस्त्रग्रहणक विषयमें श्वेतांबरीय ग्रंथ आचारांगसूत्र अपने छठे अध्यायके तृतीय उद्देशके ३६० वें सूत्रमें यों लिखता है - . ____“जे अचेले परिखुसिये तस्सणं भिक्खुस्स एवं भवइ:- परिजिन्ने
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com