Book Title: Shwetambar Mat Samiksha
Author(s): Ajitkumar Shastri
Publisher: Bansidhar Pandit

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Page 230
________________ ( २२२ । अनेक प्रश्न ऐसे हैं जो कि तीर्थंकरोंके देवदृष्य वस्त्र रखनेकी कल्पनाको एक दम उडा देते हैं। कल्पसूत्रके ६६ वें पृष्ठ पर उल्लेख है कि " हवे एवी रीते श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी एक वर्ष अने एक माससुधि वस्त्रधारी रह्या तेवार पछी वस्त्ररहित रह्या तथा हाथरूपीज पात्रवाला रह्या ।" __यानी-- इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर स्वामी एक वर्ष और एक महीने तक वस्त्रधारी रहे । उसके पीछे वस्त्ररहित नम ही रहे और हाथरूपी पात्रमें भोजन करनेवाले हुए। कल्पसूत्रके इस लेखसे यह सिद्ध हुआ कि १३ मास पीछे अंत समय तक स्वयं भगवान महावीर स्वामी नग्न दिगम्बर साधु रहे । फिर ऐसा होनेपर तत्वनिर्णयप्रासादके ५४२ वें पृष्ठपर लिखा हुआ मुनि मात्मानंदका " श्री महावीर भगवंतके निर्वाण हुआ पीछे ६.९ वर्षे बोटिकों के मतकी दृष्टि अर्थात दिगम्बर मतकी श्रद्धा स्थवीरपुर नगरमें उत्पन्न हुई ।" यह लेख कैसे मेल खा सकता है । इन दोनोंमेंसे या तो कल्पसूत्र का कथन असत्य होना चाहिये अथवा तत्वनिर्णयप्रासादका लेख असत्य होना चाहिये । किन्तु कल्पसूत्रका कथन तो इस लिये असत्य नहीं कि आचारांगसूत्र आदि ग्रंथों में भी भगवान ऋषभदेव, महावीर आदि तीर्थंकरों के नग्न दिगम्बर वेषका उल्लेख है । तथा सर्वोत्कुष्ट जैन साधु जिनकल्पी मुनिका नग्न दिगम्बर होना ही बतलाया है जिसको स्वयं मुनि आत्मानंदजी भी स्वीकार करते हैं। अतएव दो हजार वर्षांसे ही दिगम्बर मतकी उत्पत्ति कहने वाला आत्मानंदजीका लेख ही असत्य है। हमको बहुत भारी आश्चर्य तो मुनि अत्मानंदजीकी ( जिनको श्वेताम्बरी भाई अपना प्रख्यात कलियुगी सर्वज्ञ आचार्य मानते हैं अतएव पालीतानाके मंदिरोंमें उनकी पाषाण प्रतिमा विराजमान करके पूजते हैं ) समझ पर माता है कि उन्होंने दिगम्बर संघकी उत्पत्ति कहने वाली कल्पित कथा लिखते समय यह विचार नहीं किया कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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