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अहिंसा धर्म हा राजपुत्र देखाले लोग संयमयों को अपनी का
राजा लोग नीतिमार्ग छोडकर अनीतिमार्गपर चलेंगे। तेरहवें स्वप्नका फल है कि कलिकालमें तपश्चरण करनेके माव मनुष्योंको अपनी छोटी अवस्थामें ही होंगे | वृद्ध दशावाले लोग संयम नहीं ग्रहण करेंगे । ऊंटपर चढा हुआ राजपुत्र देखनेका फल यह है . कि राना लोग अहिंसा धर्म छोडकर हिंसक बनेंगे । धुलसे ढके हुए रत्नोंके देखनेका कल यह है कि साधुलोग भी परस्पर एक दूसरेकी निंदा करेंगे । अंतिम स्वमका फल यह है कि बादल ठीक समयपर वर्षा नहीं किया करेंगे। यानी अतिवृष्टि, अनावृष्टि प्रायः हुमा करेगी।
सम्राट चन्द्रगुप्त अपने १६ दुःस्वप्नोंके ऐसे अशुभ फल होते जानकर संसारसे भयभीत हो गया। उसने शरीर, धन, कुटुम्ब, राज्यशासन भादिकी असारता समझकर साधु बनकर तपस्या करना ही उत्तम समझा। ऐसे प्रबल वैराग्य भावसे प्रेरित होकर राजसिंहासन पर बैठ राज्य करना जंजाल मालम हुआ। इस कारण उसने अपने पुत्र सिंहसेनको निसका कि दूसरा नाम विन्दुसार भा, राजसिंहासन पर बैठाया और उसको राज्यशासनके समस्त अधिकार देकर आप श्री भद्रबाहु भाचार्यसे मुनिदीक्षा लेकर साधु बन गया। दीक्षा ग्रहण करते समय भद्रबाहु भाचार्यने उसका चन्द्रगुप्त नाम बदलकर प्रभाचन्द्र रख दिया ।
एक दिन भद्रबाहु आचार्य गोचरीके लिये नगरमें गये वहां पर जिनदास सेठने उनका आह्वान किया। तदनुसार नन आचार्य घरके भीतर भोजन करने घुसे तब वहांपर एक छोटेसे बालकने भद्रवाहुको घरमें आते देखकर कहा कि 'जाओ जाओ, ' भद्रबाहु स्वामीने उससे पूछा कि कितने समयके लिये जावें ? उस अबोध बालकने कहा १२ बारह वर्ष के लिये । यह सुनकर भद्रबाहु आचार्य अंतराय समझ कर बिना आहार ग्रहण किये ही वहांसे वनमें पीछे चले गये ।
___ वहाँपर पहुंचकर श्री भद्रबाहु आचार्यने अपने समस्त मुनिसंघको पासमें बुलाया और उग सबसे कहा कि अब इधर मालवदेशमै १२
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