Book Title: Shwetambar Mat Samiksha
Author(s): Ajitkumar Shastri
Publisher: Bansidhar Pandit

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Page 259
________________ । २५१ ) भद्रबाहुरग्रिमस्समग्रबुद्धिसम्पदा शुद्धसिद्धशासनः सुशब्दबन्धसुन्दरम् । इद्धवृत्तिरत्र बद्धकर्मभित्तपोद्ध ऋद्धिवद्धितप्रकीर्तिरुद्धधीमहर्द्धिकः ।। यो भद्रबाहुः श्रुतकेवलीनां मुनीश्वराणामिह पश्चिमोपि । अपश्चिमोऽभूद्विदुषां विनेता सर्वश्रुतार्थप्रतिपादनेन ॥ यदीयशिष्योऽजनि चन्द्रगुप्तः समग्रशीलानतदेववृद्धः । विवेश यत्तीत्रतपःप्रभावात् । प्रभूतकीर्तिर्भुवनान्तराणि ॥ भावार्थ-जिसमें समस्त शीलरूपी रत्नसमूह भरे हुए हैं और जो शुद्धबुद्धिसे प्रख्यात है उस वंशमें समुद्रमें चन्द्रमासमान श्री भद्रबाहु स्वामी हुए। १। समस्त बुद्धिशालियोंमें श्री भद्रबाहु स्वामी अग्रेसर थे । शुद्ध सिद्ध शासन और सुंदर प्रबन्धसे शोभासहित बढी हुई है व्रतकी सिद्धि जिनकी तथा कर्मनाशक तपस्यासे भरी हुई है कीर्ति जिनकी ऐसे ऋद्धिधारक श्री भद्रबाहु स्वामी थे । २ । जो भद्रबाहु स्वामी श्रुतकेवलियों में अन्तिम थे किंतु अखिल शास्त्रोंका प्रतिपादन करनेसे समस्त विद्वानों में प्रथम थे । ३ । जिनके शिष्य चन्द्रगुप्तने अपने शीलसे बडे बडे देवोंको नम्रीभूत बना दिया था। जिन चन्द्रगुप्तके घोर तपश्चरणके प्रभावसे उनकी कीर्ति समस्त लोकोंमें व्याप्त हो गई है। ४।। इन शिलालेखोंसे यह स्पष्ट सिद्ध हो गया कि सम्राट चन्द्रगुप्त अन्तिम श्रुतकेवलीके शिष्य होकर मुनि हुए थे और उनके साथ चन्द्रगिरि पर्वतपर उन्होंने तपस्या की थी। पूर्व अवस्थामें चन्द्रगुप्त एक अच्छे प्रसिद्ध शूरवीर सम्राट् थे इस कारण शिलालेखों में भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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