Book Title: Shwetambar Mat Samiksha
Author(s): Ajitkumar Shastri
Publisher: Bansidhar Pandit

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Page 274
________________ हुए हैं । विक्रम संवत् चालू हो जानेके पीछे जितनी भी प्रतिमाएं निर्मित हुई हैं उन सब ही पर संवत् उल्लिखित हैं। बंगाल देशके वर्द्धमान, वीरभूम, सिंहभूम, मानभूम आदि नगरों के नामोंसे प्रमाणित होता है कि इस देशमें भी महावीर स्वामी का भच्छा प्रभाव रहा है क्योंकि इन नगरोंके नाम भगवान महावीर स्वामी के अपग्नाम वर्द्धमान, वीर भादि के अनुकरण रूप हैं। सिंह महावीर स्वामी का स्वास चिन्ह है। . इन सब प्रमाणोंसे सिद्ध होता है कि दिगम्बर मत उस समयसे विद्यमान है जब कि श्वेताम्बर मतका नाम भी विद्यमान नहीं था किंतु जैन धर्मका समूचा रूप दिगम्बरीय कारमेही था। अब हम कुछ अजैन ग्रंथों के प्रमाण और उपस्थित करते हैं जो कि दिगम्बर मतकी प्राचीनताको सिद्ध करते हैं । दो हजार वर्ष पहले होने वाले राजा विक्रमादित्यकी रानसभाके ९ नौ रत्नोंमें से एक प्रसिद्ध रत्न ज्योतिराचार्य बराहमिहिर महन्तप्रतिमाका आकार वराहमिहिर संहितामें इस प्रकार लिखता है । आजानुलम्बबाहुः श्रीवत्सांकः प्रशान्तमूर्तिश्च ।। दिग्वासास्तरुणो रूपवांश्च कार्योऽर्हतां देवः ॥ अध्याय ५८ श्लोक ४५ अर्थात् -घुटनों तक लम्बी भुजाओंवाली, छातीके बीच में श्रीवःसके चिन्हवाली, शान्तमूर्ति नग्न, तरुण अवस्थावाली, सुन्दर ऐसी जैनियोंके आराध्य देवकी मूर्ति बनानी चाहिये । वाल्मीकि ऋषिफणीत रामायण बालकांडके १४ वें सर्गका २२ वां श्लोक ऐसे लिखा है ब्राह्मणा भुञ्जते नित्यं नाथवन्तश्च भुञ्जते । तापसा भुञ्जते चापि श्रमणाश्चापि भुञ्जते ॥ . अर्थात- राजा दशरथके यज्ञमें ब्रामण तथा क्षत्रिय भोजन करते थे । तापसी (शैवसाधु ) भोजन करते थे और श्रमण ( नग्न दिगम्बर साधु ) भी भोजन करते थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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