________________
( २७८ )
४-केवलज्ञान प्रगट हो जानेपर अहन्त भगवानको भूख नहीं लगती। अनन्तसुख, अनन्तबल प्रगट हो जानेसे किसी भी प्रकारकी शारीरिक तथा मानसिक पीडा नहीं होती। इस कारण प्रमादजनक कवलाहार वे नहीं. करते हैं।
५-केवलज्ञानी अनन्तसुखसम्पन्न होते हैं इस कारण उनके ऊपर मनुष्य, देव, पशु आदिके द्वारा किसी भी प्रकार उपद्रव होकर उनको दुःख प्राप्त नहीं हो सकता ।
६-अर्हन्त भगवानकी प्रतिष्ठित प्रतिमापर मुकुट, कुंडल, हार, आदि आभूषण तथा चमकीले वस्त्र पहनाना जैनसिद्धांतके विरुद्ध है-अर्हन्त भगवानका अवर्णवाद है; क्योंकि अर्हतदेव पूर्ण वीतराग होते हैं तथा उनकी प्रतिमा बनवाकर दर्शन, पूजन, स्तवन आदि करनेका उद्देश भो वीतरागता प्राप्त करना है।
७-मुक्ति प्राप्त करनेका साधन उत्तम साधु बनकर तपस्या करना है। ऐसा करनेसे ही यथाख्यात चारित्र, उत्तम शुक्लध्यान प्राप्त होता है। उत्तम साधु [ जिनकल्पी मुनि ] वस्वरहित नग्न ही होता है। और साधुके नग्न वेशके निमित्तसे ही मुक्ति प्राप्त होती है । अत एवं अनेक दोष जनक वस्त्रोंको धारण करनेवाली स्त्रियां मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकती क्योंकि उनके शरीरके अंगोपांगोंकी रचना इस प्रकार होती है कि वे नम होकर तपस्या नहीं कर सकती हैं और न उनमें घोर निश्चल तपश्चरण करनकी उत्तम शक्ति ही होती है ! इस कारण स्त्रीको मुक्ति कहना असत्य बात है।
८-जैन सिद्धांतके अनुसार ( श्वेतांबरीय सिद्धांत शास्त्रों के अनुसार भी ) तीर्थकर पद पुरुषको ही प्राप्त होता है। इस कारण स्त्रीको तीर्थकर पदधारिणी कहना भी असत्य है ।।
९-जैनधर्म स्वीकार किये विना मनुष्यको सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान नहीं हो सकता और जैन सिद्धांतके अनुसार आचार धारण किये विना सम्यक्चारित्र नहीं हो सकता इसलिये अजैन मार्गका अनुसरण करते हुए (अन्यलिङ्ग धारण करते हुए ) मनुष्यको मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com