Book Title: Shwetambar Mat Samiksha
Author(s): Ajitkumar Shastri
Publisher: Bansidhar Pandit

View full book text
Previous | Next

Page 285
________________ । २७७ ) उपसंहार. १-जैनधर्म वीतरागताका उपासक है। उसके धार्मिक नियम बीतरागताके उद्देशपर निर्माण हुए हैं। इस कल्पमें जैनधर्मको जन्म देनेवाले भगवान ऋषभदेव भी उत्तम वीतराग ये-नग्न साधु थे। उस वीतराग मार्गका समूल रूप दिगम्बर सम्प्रदायमें विद्यमान है इस कारण दिगम्बर सम्प्रदाय ही पुरातन जैनधर्मका सच्चा स्वरूप है। २-श्वेताम्बर सम्प्रदाय श्रुतकेवली श्री भद्रबाहु स्वामीके स्वर्गारोहण होनेके पीछे और विक्रम संवत्से लगभग ३०७ वर्ष पहले उत्पन्न हुमा है । उत्तर भारत प्रदेशमें १२ वर्षका घोर दुर्भिक्ष पडनेके कारण जो जैन साधु मालवा प्रान्तमें रह गये थे उन्होंने नगरमें रहकर अपने सामने आई हुई अनिवार्य आपदाओंको दूर करनेके लिये वन, दंड, पात्र मादि परिग्रह स्वीकार कर लिया था। उनमेंसे कुछ साधु ओंने तो दुर्भिक्ष समाप्त हो जानेपर दक्षिण देशसे अपने समस्त संघके साथ लौटे हुए श्री विशाखाचार्यके उपदेशानुसार प्रायश्चित्त लेकर भ. पना चारित्र परिग्रह छोडकर फिर पहलेके समान शुद्ध बना लिया। किंतु जो साधु शिथिलाचारी हो गये थे उन्होंने दुराग्रह वश अपने चारित्रमें सुधार नहीं किया और उन्होंने अपने वेशकी पुष्टि तथा प्रचारके लिये श्वेताम्बर सम्प्रदायकी नींव डाली। ३-दिगम्बर सम्प्रदायको पुरातन सिद्ध करनेवाले भनेक साधन हैं। क-जैनधर्मके प्रारम्भ समयसे प्रचलित वीतरागता दिगम्बर संप्रदायके ही आराध्य अर्हन्तदेवमें, उनकी प्रतिभाओंमें, महाव्रतधारी साधुओंमें तथा शास्त्रों में यथार्थ रूपसे पाई जाती है । वह वीतरागता श्वेताम्बर सम्प्रदायमें नहीं है। ख-पुरातन बौद्ध, सनातनी, यूनानी भादि अजैन ग्रंथों में जहां कहीं भी जैन साधुओंका तथा पूज्य महन्त प्रतिमाओंका वर्णन माया है वहांपर नग्न दिगम्बर रूपका ही उल्लेख है । ग-प्रख्यात भारतीय तथा यूरोपीय ऐतिहासिक विद्वान दिगम्बर सम्प्रदायको श्वेताम्बर सम्प्रदायसे पुरातन बतलाते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 283 284 285 286 287 288