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तानसङ्कारकारको ( अ ) पतिहत चकिवाहनबलो चकधरो गुतचको पसन्तचको राजसिवंसकुल विनिगतो महाविजयो राजा खारवे लसिरि ।
यानी - तेरहवें वर्ष में अपने विजयी राजचक्रको बढाया । कुमारी पर्वत [ खंडगिरि ] के ऊपर अर्हन्त मंदिर के बाहर निषद्या में ( नशिया में )....... कालेरक्ष्य...सर्व दिशाओंके महाविद्वानों और तपस्वी साधुओं का समुदाय एकत्र किया था । अर्हन्तकी निषद्या के पास पर्वतके शिखर ऊपर समर्थ कारीगरोंके हाथोंसे .... . पातालक, चेतक और asin स्तम्भ स्थापित कराये । मौर्य राज्यकाल के १६५ एकसौ पैसठवें वर्ष में क्षेमराजका पुत्र वृद्धिराज उसका पुत्र भिक्षुरान नामका राजा शासन करता हुआ ( उसने यह ) कराया । विशेष गुणमें कुशल सर्व पाषण्डपूजक..... 5... संस्कार करानेवाला जिसका वाहन
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और सेना अजेय है चक्रका धारक है तथा निष्कंटक राज्यका भोक्ता है राजर्षि वंशमें उत्पन्न हुआ है ऐसा महाविजयी राजा खारवेलश्री 1 यह सब कोई जानता है कि खंडगिरि उदयगिरि लगभग २५०० वर्षो से दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र है । इस तीर्थक्षेत्रकी विद्यमान गुफाओंसे तथा अनेक शिलालेखोंसे प्रमाणित होता है कि यहांपर दिगम्बर जैन साधुओंका निवास प्राचीन समय में बहुत अच्छी संख्या में रहा है । उपर्युक्त २१०० वर्षोंके इस प्राचीन शिलालेखसे यह स्पष्ट प्रमाणित होता है कि भगवान महावीर स्वामीका प्रभाव मगध, कलिंग [ उडीसा ] देशों में भी बहुत अच्छा रहा है ।
मगध देश के शासक राजा आजसे २४०० चौवीस सौ वर्ष पहले कलिंग देशपर विजय पाकर वहांसे भगवान ऋषभदेवकी मनोहर पूज्य प्रतिमाको ले आये थे जो कि राजा खारवेलने ३०० तीन सौ वर्ष पीछे मगधके शासक नरपति पुष्पभिन्नपर विजय पाकर फिर प्राप्त कर ली । इससे सिद्ध होता है कि २४०० वर्ष पहलेके मगध और कलिंगदेशके राजकुटुंब दिगम्बर जैन धर्मानुयायी थे ।
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