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( २६. ।
रामायणकी भूषणटीकामें श्रमण शब्दका अर्थ यों लिखा है
" श्रमणा दिगंबरा श्रमणा वातवसना इति निघंटुः" अर्थात- श्रमण; दिगम्बर ( दिशारूपी वस्त्र पहननेवाले नग्न) मथवा वातवसन ( वायुरूपी कपडे धारण करनेवाले यानी नग्न ) साधु होते हैं। ____ यह रामायण दो हजार वर्ष से भी अति प्राचीन ग्रंथ बतलाया गया है। इस कारण इसके उपर्युक्त श्लोकसे सिद्ध होता है कि कमसे कम बास्मीकि ऋषिके समयमें भी दिगम्बर जैन साधु पाये जाते थे।
भागवत के ५ वें स्कन्धके ५ वें अध्यायके २८ वें श्लोक में लिखा है
एवमनुशास्यात्मजान् स्वयमनुशिष्टानपि लोकानुशायनार्थ परमसुहृद् भगवानृषमोपदेशोपशमशीलानामुपरतकर्मणां महामुनीनां भक्तिवैराग्यलक्षणं पारमहंस्यधर्ममुपशिक्षमाणः स्वतनयशतज्येष्ठं परम भागवंत भगवज्जनपरायण भरतं धरणिपालनायाभिषिच्य स्वयं भवनरवोर्वरितशरीरमात्रपरिग्रह उन्मत्त इव गगनपरिधानः प्रकीर्ण केश आत्मन्यारोपिताहवनीयो ब्रह्मावर्तात प्रवबाज ।
अर्थात्-इस प्रकार अपने विनीत पुत्रोंको लोगोंपर प्रभाव रखनेके लिये समझाकर, समस्त जनताके परमप्रिय भगवान ऋषभदेव शान्तस्वभावी, सांसारिक कार्योंसे विरक्त महामुनियोंको भक्तिवैराग्यवाले परमहंसोंके धर्मकी शिक्षा देते हुए, भाग्यशाली, महापुरुषोंकी सेवा में तत्पर ऐसे सबसे बड़े पुत्र भरतको पृथ्वी पालनके लिये राजतिलक करके शरीर मात्र परिग्रहके धारक, उन्मतके समान नग्न दिगम्बर वेश धारण किये, जिनके केश विखरे हुए हैं ऐसे भगवान ऋषभ देव ब्रत्मावर्तसे ( विठूरदेशसे ) सन्यास लेकर चले गये।
यह भागवत ग्रंथ भी बहुत प्राचीन है। यह भी दिगम्बर सम्प्रदायकी प्राचीनता सिद्ध करता है।
अब हम कुछ बौद्ध ग्रंथों के प्रमाण भी यहां उपस्थित करते हैं नो कि हमको श्रीयुत वा. कामता प्रसादनी जैन लिखित " महावीर
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