Book Title: Shwetambar Mat Samiksha
Author(s): Ajitkumar Shastri
Publisher: Bansidhar Pandit

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Page 273
________________ ( २६५ ) मगधदेशका प्राचीन राजवंश ( नंदबश ) दिगंबर जैनधर्मानुयायी ही था यह बात संस्कृत नाटक मुद्राराक्षस से जो कि बहुत प्राचीन अजैन नाटक है, सिद्ध होता है। उसमें लिखा है कि नंदराज और उसके मंत्री राक्षसको विश्वासमें फसानेके लिये चाणक्यने एक दूतको जीवसिद्धि नाम रखकर क्षपणक ( दिगम्बर मुनि) बनाकर भेजा था । उस जीवसिद्धि के उपदेशको उस नंदराज और राक्षस मंत्रीने बहुत भक्तिपूर्वक श्रवण किया था । तथैव भगवान् महावीरस्वामीके समय से अनेक शताब्दियों तक बंगाल देशमें भी दिगम्बर जैन धर्मका प्रभाव बहुत अच्छा रहा है । इस aranी साक्षी भाज दिन भी वहांके स्थान स्थान पर बने हुए अति प्राचीन भग्न दिगम्बर जैन मंदिर तथा मनोहर दिगम्बर अर्हन्त प्रतिबिम्ब दे रहे हैं । इन प्रतिमाओंमें अधिक तर दो हजार वर्षो से प्राचीन प्रतिमाएं हैं ऐसा ऐतिहासिक विद्वानोंका मत है । प्राच्यविद्यामहार्णव, विश्वकोषके रचयिता श्रीयुत नगेन्द्रनाथ वसु लिखित (सन् १९१३ में ) भारकीलोजिकल सरवे में उल्लेख है कि वरसई के पास कोसलीके खंडित स्थानों में भगवान पार्श्वनाथका एक प्रतिविम्ब कुसुम्ब क्षत्रिय राजाओंके समयका दो हजार वर्ष पुराना है । इस प्रतिमा के दोनों ओर चार अन्य मूर्तियां हैं जिनमें से दो खगासन और दो पद्मासन हैं । इसी प्रकार किचिन और आदिपुरमें भी कुसुम्ब क्षत्रिय राजाओं के समय की दो हजार वर्ष पुरानी प्रतिमाएं विद्यमान हैं । आदिपुर कुसुम्ब राजाओंकी राजधानी थी । बंगाल देशकी ये तथा अन्य सभी अर्हन्त मूर्तियां दिगम्बर नग्न ही हैं। उनपर लंगोट, कृत्रिम चक्षु मुकुट कुन्डल आदि का चिन्ह नहीं है। अधिक तर मनोहर अखंडित पूज्य प्रतिमाओं पर संवत आदि का लेख नहीं है। इससे सिद्ध होता है कि वे प्रतिमाएं अवश्य ही दो हजार वर्ष पुरानी हैं क्योंकि संवत् की प्रथा विक्रमादित्य राजाके समयसे चली है जिसको कि आज १९८६ वर्ष ३४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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