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भगवान और महात्मा बुद्ध" नामक पुस्तकसे प्राप्त हुए हैं। इन प्रमागोंसे स्पष्ट सिद्ध होगा कि श्री महावीर स्वामी की छद्मस्थ अवस्थामें भी पार्श्वनाथ भगवानके उपदेशका अनुकरण करने वाले मुनि नग्न दिगम्बर वेशधारी ही थे।
डायोलाग्ल ऑफ बुद्ध" नामक पुस्तकके कस्सप सिंहनादसुत में अनेक प्रकारके साधुओंकी क्रियाओंका वर्णन भाया है उसमें जैन साधुओंके अनुरूप ऐसा लिखा है-- ____" वह नग्न विचरता है,....भोजन खडे होकर करता है, वह अपने हाथ चाटकर साफ करलेता है, ....वह दिनमें एकबार भोजन करता है " इत्यादि ।
इस कथनसे दिगम्बर मुनिका भाचरण सिद्ध होता है।
भार्यसुरकी जातककथाओंमेंसे घटकथामें एक स्थानपर मदिरापानके दोष दिखलाते हुए यों लिखा है
“ इसके ( मदिराके ) पीनेसे लज्जावान भी लजा खो बैठते हैं और वस्त्रों के कष्टों और बन्धनों से अलग होकर निर्ग्रन्थोंकी तरह नग्न होकर वे जनसमूह कर पूर्ण ऐसे राजमार्गोपर चलते हैं ।"
इस लेखसे एक तो जैन साधुका नग्न वेश प्राचीन सिद्ध हुआ। दूसरे निथ । नग्न दिगम्बरको ही कहते हैं यह भी सिद्ध हुआ।
दिव्यावदान ग्रंथमें एक स्थानपर लिखा है___"कथं स बुद्धिमान् भवति पुरुषो व्यज्ञनावितः ।
लोकस्य पश्यतो योऽयं ग्रामे चरति नग्नकः-" __ अर्थात्-वह [निम्रन्थ जैन साधु ] अज्ञानी पुरुष बुद्धिमान कैसे कहा जा सकता है जो देखनेवाले लोगोंके समुदायमें नग्न घूमता है।
यहांपर जैन मुनियोंकी नग्न दशाको निन्दा की गई है; परन्तु इससे यह सिद्ध होता है कि जैन साधुओंका नग्नरूप प्राचीन समयसे चला आता है।
धम्मपदकथा नामक ग्रंथके विशाखावत्थू प्रकरण में दूसरे भागके ३८१ पृष्ठपर विशाखा नामक एक सेठपुत्रीकी कथा दी है जिसका
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