Book Title: Shwetambar Mat Samiksha
Author(s): Ajitkumar Shastri
Publisher: Bansidhar Pandit

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Page 271
________________ । २६३ ) जानकर गर्दभ नगरमें पूर्व राजाओंसे नियत किये हुए मार्गके कर को ( महसूलको ) और जनपदभावनको (१) जो तेरहसौ वर्षसे था दूर किया। १२- वारसमं च व (सं)....."हस..... हिवितासयन्तो उतरापथराजानो.... 'मगधानं च विपुलं भयंजनेतो हथिसगनायं पाययति मगधं च राजानं बहुपटिसासिता पादे वन्दापयति नन्दराजनितस अगजिनस.....गहरतन पडिहारहिअ मगधं वसिवु नयार, विजाधरु लेखिलं वरानि सिहरानि निवेसयति सतवसदान परिहारेन अभूतमकरियं च हथीनादानपरिहार.......आहरापयति इधं सतस.......सिनोवसि करोति। ____ अर्थात् -बारहवें वर्षमें उत्तरमार्गके राजाओंको दुख देने वाले मगधके लोगोंको बहुत भय उत्पन्न कराकर हाथियोंको गङ्गाका पानी पिलाया और मगधके राजाको कडा दंड देकर अपने पैरों नवाया। नन्दराजासे ली हुई प्रथम जिन (भगवान ऋषभदेव )......मगधर्म एक नगर बसाकर....विद्याधरोंसे उकेरे हुए भाकाशको छूने वाले शिखर हैं जिसमें ( मंदिरमें ) उसको स्थापित किया । सात वर्षके त्यागका दान कर तथा अद्भुत अपूर्व ( पहले ऐसा कभी नहीं किया ऐसा ) हाथियोंका दान किया ।.......लिवाया इस प्रकार सौ....... रहने वालोंको वश किया । १३-तरेसमे वसे सुपवत विजयिचको केमारी पवते अरहतोप (निवासे) हिकाय निसिदिषाय यपजके......कालेरिखिता.... (स) कतसमायो सुविहितानं च सबदिसानं (यानिनं) तापसा (नं १)....संहतान (?) अरहन्तनिषिदियासमीपे पभारे वरकारुसमथ (थ) पतिहि अनेकयोजनाहि......पटालके चेतके च बेडुरियगमे थमे पतिठापयति । पनंतरिय सठि वससते राजमुरियकाले वोछिने च चोयठ अगसप्ति कुतरियं चुपादयति खेमराजा वधराजा स भिखुराजाइ (ना) म राजा पसन्तो सनतो अनुभवतो (क) लाणानि.......गुणविसेस कुसलो सवपासण्डपूजको........... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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