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उनका नाम प्रभाचन्द्र (मुनिदीक्षाके समयका नाम ) न लेकर अधिकांश चन्द्रगुप्त ही लिया गया है । तथा उनके नामके ऊपर ही कटवप्र पर्वतका नाम चन्द्रगिरी रखदिया गया । एवं उनके पौत्र सम्राट अशोक द्वारा निर्माण कराये गये इस पर्वतके जैन मंदिरोंका नाम 'चन्द्रगुप्तवस्ती' प्रसिद्ध हुआ।
इसके सिवाय गौतम क्षेत्रके अपर भागमें बहनेवाली कावेरी नदीके पश्चिम भागमें जो रामपुर ग्राम है उसके अधिपति सिंगरी गौडाके खेतमें जो दो शिलालेख मिले हैं वे इस प्रकार हैं।
शिलालेख ६ श्री राज्यविजय सम्वत्सर सत्यवाक्य परमानदिगळु लुत्त नारिकनेय वर्षात् मार्गशीर्ष मासद पेरतले दिवासभागे स्वस्ति समस्तविद्यालक्ष्मी प्रधाननिवासप्रभव प्रणत सकल सामन्त समूह भद्रबाहु चन्द्रगुप्त मुनिपति चरणलाञ्छनान्चित विशालसिरकलवप्पु गिरिसनाथ वेलगुलाधिपति गणधा श्रीवर मतिसागर पण्डितभट्टार वेसदोल अन्नयन देवकुमारनु धोग्नु इलदुर मारणे वाणपल्लिय कोण्ड श्रीके सिग.............तले नेरिपुल कट्टन कट्ट सुडरके कोट्टस्थिति क्रमवएन्तुव यन्दोदे बंडर नियनीर वयगीय गिड वरिस पेत्तेन्दि ऐरदनेय वरिसमेड अलविमुरने यवरिस दन्दिगे यडलवीयेलाकलांक यल्लं इल्द युललु सलगु ।
अर्थ-समस्त लक्ष्मी तथा सरस्वतीका निवासस्थान और समस्त सामन्तों द्वारा नमस्कृत श्री भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त महामुनिके चरणों से मंडित कटवा पर्वत सदा विजयशील रहे।
सत्यवाक्य परमानदी महाराजके राज्यके चौथे वर्षमें मार्गशीर्ष शुक्लाष्टमीको श्री मतिसागर पंडित भट्टारककी आज्ञानुसार अन्नय्या, देवकुमार और घोर इन तीनोंने बेनपल्लीके खरीददार केशीके लिये तेल्लुरमें सेतु निर्माणके बदलेमें निम्न लिखित दान दिया है। ____सब प्रामनिवासियोंने खेतीके लिले इस सेतु से जल लेनेका प्रयोग किया प्रथमवर्षमें विना कुछ दिये ही जलका उपयोग करना । दूसरे वर्षमें कुछ देकर उपयोग करना और तीसरे वर्ष में जो कुछ दिया जाया वह निश्चित रूपसे निर्धारित कर समझा जाय ।
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