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वराहमिहिरके इस लेखसे सिद्ध होता है कि दिगम्बर साधु राजा विक्रमादित्यके जीवनकालमें भी विद्यमान थे इस कारण श्वेतांबरी ग्रंथोंने जो विक्रम संवत्के १३७ वर्ष पीछे दिगम्बर सम्प्रदायकी उत्पत्ति बतलाई है वह असत्य है।
तथा-महाभारत जो कि ऋषि वेदव्यासने विक्रम संवत्से सैकड़ों वर्ष पहले लिखा है उसमें एक स्थानपर ऐसा उल्लेख है
" साधयामस्तावदित्युक्त्वा प्रतिष्ठतोतकस्ते कुंडले गृहीत्वा सोपस्यदथ पथि नग्न क्षपणकमागच्छन्नं मुहुमुहुर्दृश्यमानमदृश्यमानं च ।" .
अर्थात्-उत्तक नामक कोई विद्यार्थी कुंडल लेकर चल दिया उसने रास्तेमें कुछ दीखते हुए, कुछ न दीखते हुए नग्न मुनिको देखा। ___ महाभारतका यह उल्लेख भी सिद्ध करता है कि जैन साधुओंका दिगम्बर रूप ही प्राचीन कालसे चला आरहा है । पहले श्वेत वस्त्रधारी जैन साधु नहीं होते थे।
कुसुमांजलि ग्रंथके रचयिता उदयनाचार्य अपने ग्रंथके १६ वें पृष्ठपर लिखते हैं कि___ " निरावरणा इति दिगम्बराः " भर्थात्-वस्त्ररहित यानी नमरूप दिगम्बर होते हैं ।
न्यायमंजरी ग्रंथके ग्रंथकार जयन्तभट्ट ग्रंयके १६७३ पृष्ठपर लिखते हैं--
क्रिया तु विचित्रा प्रत्यागमं भवतु नाम। भस्मजटापरिग्रहो दंडकमंडलुग्रहणं वा रक्तपटधारण वा दिगंबरता वावलम्ब्यतां कोऽत्र विरोधः । ___ अर्थान-क्रिया अनेक प्रकारकी होती है । शरीरसे अष्म लगाना शिर पर जटा रखना अथवा दंड कमंडलुका रखना या लाल कपडेका पहनना अथवा दिगम्बरपनेका ( नग्नरूप ) अवलंब ग्रहण करो; इसमें क्या विरोध है। इस प्रकार इन ग्रंथों में भी दिगम्बर मतकी प्राचीनताका उल्लेख है । तैत्तरीय भारण्यकके १. वें प्रपाठकके ६३ वें अनुवाकमें लिखा है
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