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स्थूलाचार्यका जीव आर्तध्यानसे मरा इस कारण व्यन्तरदेवका शरीर पाया । उस व्यन्तरने अपने पूर्व भवकी अवस्था जानकर उस भ्रष्ट साधुसंघमें उपद्रव करना आरम्भ कर दिया । उसने उन साधुओंसे कहा कि जब तक तुम लोग नग्न निग्रंथ वेश धारण नहीं करोगे तब तक यह उपद्रव करना नहीं रोकूगा । तब उन साधुओंने दीनताके साथ कहा कि हम बलहीन हैं । नग्न निग्रंथ वेश धारण करने में हम असमर्थ हैं । हमने बहुत अपराध किया है जो आपको अज्ञानता वश पहले भवमें ( स्थूलाचार्यके भवमें ) कष्ट दिया है उसको क्षमा कीजिये । हम आपकी पूजा भक्ति करेंगे।
ऐसा कहकर उन्होंने उस व्यन्तरदेवकी स्थापना करके पूजन किया । इसपर व्यन्तर देवने भी अपना उपद्रव बंद कर दिया।
तदनन्तर उन भ्रष्ट जैन साधुओंने अनेक धनिक सेठों, राजपुत्र, पुत्रियों को मंत्र, यंत्रादिका प्रभाव दिखलाकर अपना भक्त बनालिया। उन धनिक सेठों तथा राजपुत्रों के कारण अन्य साधारण जनताकी भक्ति भी उन साधुओंपर होने लगी। इस कारण महाव्रतका वे साधु उस रूपमें भी सम्मान पाने लगे । सम्मान पानेसे उन्होंने अपने भ्रष्ट साधुवेशका प्रचार करना आरम्भ किया। तदनुसार बहुतसे मनुष्योंको जैन मुनिकी दीक्षा देकर अपने सरीखा दंड. पात्र वस्त्रधारी बना दिया । लोगोंने भी मुनिचर्याका सरल मार्ग देखकर मुनि बनना सहर्ष स्वीकार कर लिया।
इस प्रकार वे दुर्भिक्षके समय भ्रष्ट साधु अपना संघ बनाकर शिथिलाचार फैलाने लगे । उनके शिष्य उनसे भी अधिक शिथिलाचारका पक्ष पकडकर भ्रम फैलाने लगे। इस प्रकार वह जैनसाधुओंका भ्रष्ट स्वरूप उनके शिष्य प्रतिशिष्यों द्वारा भी खूब प्रचारमें लाया गया। उधर विशाखाचार्यकं संघके तथा उनके उपदेशसे प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध होनेवाले स्थूलाचार्यके संघके साधु ( मुनि ) अपने प्राचीन सत्य मार्ग पर दृढ रहे और उनके शिष्य प्रतिशिष्य नग्न निग्रंथ वेशका प्रचार करते रहे ।
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