Book Title: Shwetambar Mat Samiksha
Author(s): Ajitkumar Shastri
Publisher: Bansidhar Pandit

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Page 241
________________ । २३३ . ___ उद्यानमें पहुंचकर चन्द्रगुप्तने बहुत विनय भावसे भद्रबाहु स्वामीके चरणों में नतमस्तक होकर प्रणाम किया। फिर यथास्थान बैठ जानेपर चन्द्रगुप्तने हाथ जोडकर भद्रबाहु स्वामीके सन्मुख रात्रिको देखे हुए १६ अशुभ स्वप्न कह सुनाये और उनका फल जाननकी इच्छा प्रगट की। भद्रबाहु स्वामीने कहा कि वत्स, १६ अशुभ स्वप्न पंचमकाल में होनेवाली घोर भवनति के बतलाने वाले हैं। उनका फल मैं कमसे कहता हूं सो तुं सावधान होकर सुन। पहले स्वप्नका फल यह है कि इस कलिकालमें अब पूर्ण श्रुतज्ञान मस्त हो जाने वाला है अर्थात् अब भागे कोई भी द्वादशाङ्गका वेत्ता श्रुतकेवली नहीं होगा। दूसरे स्वप्नका फल है कि-अब आगे कोई भी राजालोग जैनधर्म धारण कर संयम ग्रहण नहीं करेंगे। तीसरा स्वप्न बतलाता है कि-जैन मतके भीतर भी अनेक भेद हो जायेंगे। चौथे स्वप्नका फल है कि अब बारह वर्षका घोर दुर्भिक्ष ( अकाल ) होगा । पांचवा स्वप्न कहता है कि- इस कलिकालमें कल्पवासी आदि देव, विद्याधर, चारणमुनि नहीं आयेंगे । छठे स्वप्नका फल यह है कि-उत्तम कुलवाले क्षत्रिय आदि कुलीन मनुष्य कलिकालमें जैनधर्म ग्रहण नहीं करेंगे । जैनधर्म पर नीचकुलवालोंको रुचि उत्पन्न होगी। सातवें स्वप्न का फल है कि इस कलियुगमें भूत पिशाचादि कुदेवोंकी श्रद्धा जनतामें बढेगी। आठवां स्वप्न कहता है कि कलिकालकी विकराल प्रगतिसे जैनधर्मका प्रकाश बहुत मंद हो जायगा । नौवें स्वप्नका फल यह है कि जिन अयोध्या आदि स्थानोंपर तीर्थंकरोंके जन्म आदि कल्या. णक हुए हैं वहांपर जैनधर्मका नाश होगा किन्तु दक्षिण देशमें जैनधर्मकी सत्ता बनी रहेगी । दशवें स्वप्नका फल है कि धनसम्पत्तिका उपभोग करनेवाले नीच जातिके मनुष्य होंगे। हाथीपर चढा हुषा बंदर देखा उसका फल यह है कि राज्य करनेवाले नीच लोग होंगे । क्षत्रिय राज्यहीन होंगे। वारहवें स्वप्नका कहना है कि-प्रजापालक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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